Wednesday 13 April 2016

माँ का आँचल

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बहुत याद आती हैं वो थपकियां तुम्हारी,
वो मख़मली गोद तुम्हारी
जिसमें सर रखते ही,नींद प्यारी
आ जाती थी बेख़ौफ़ हरबारी l
बहुत याद आता है वो आँचल तुम्हारा,
क्योंकि अब मेरी नींद का कोई द्वारा,
ना किसी को कोई फ़िक्र , ना कोई सहारा l

बहुत याद आती है तुम्हारी हर डांट,
कभी कोई गल्ती पर,कभी कोई छुपी बात,
ऐसा करो, ऐसा ना करो,
ज़िन्दगी में बस आगे बढ़ो l
हर डांट में छुपा प्यार अब समझ आता है,
क्योंकि अब तुमसा कोई समझाता नही,
उस प्यार से कोई डांटता भी नही l

बहुत याद आती है वो रसोई तुम्हारी
हर चीज़ बनाई हुई ,मीठा,रोटी,सब्ज़ी तरकारी,
मुंह बनाकर , डर कर करेला खाना,
छुपकर तुम्हारी आँख बचाकर अचार चुराना l
याद आती है हर बात तुम्हारी,
चलचित्र की तरह एक एक, बारी-बारी,
काश दुबारा जीने को मिल जाएं वो ज़िन्दगी सारी l

मां तुम ही हो जिससे हर वजूद है मेरा,
हाड़-मांस ,खूं है मेरा,
मेरे संस्कार, मेरी कामयाबी,
मेरी सोच, मेरी आज़ादी
सब का श्रेय है बस तुम को ही  l
कितना भी आगे क्यों ना निकली
मैं , रहूंगी सदा अंश तुम्हारा,
पुलिंदा हूं गुणों का तुम्हारा,
बेटी मैं नादान,अल्हड़, बचकानी सीतुम्हारी,
तुम मेरी मां, मम्त्वपूर्ण , सीधी-सादी,प्यारी प्यारीl

आज मां हूं मैं, फ़िर भी बच्चा बनने को जी करता है,
तुम्हारी गोद मे सिर रख,
तुम्हारे आंचल से खुद को ढक,
दुनिया की नज़रों से दूर,कहीं छूप जाने को दिल कहता है ll

-मधुमिता

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