Thursday 14 April 2016

अहसास


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नज़र  तुमको  तलाशती   है ,

मगर  तुम  नहीं  मिले  यहाँ,

यहाँ  वहाँ   हर  कहीं ,

तुमको  यूँ  खोजती  रही ,

पर  दिल को  है  यक़ीं,

हो  तुम  यहीं।

है  तुम्हारे  होने  का  अहसास,  कहीं 

मेरे  आस  पास  मुस्कुराते  यूँहीं ,

एक बात  जानलो  तुम ,

जो  मै  कहूँ  वो  मानलो  तुम, 

आसमाँ  में   चमकते ,

चाँद  में  तुम  दिखते  हो ,

पेड़ों  के  झुरमुट  से  झांकते हो।  

बसंत  के  फूलों  में,

एकांत में, मेलों  में ,

शरद  की  धूप  में,

हर  किसी  रूप  में , 

है  तुम्हारे  होने  का  अहसास।

दिल  कि  हर  धड़कन में ,

हर  एक  स्पंदन  में ,

संगीत  में , 

हर  गीत में,

आरोह  में और  

अवरोह  में ,

थाप  में  और  ताल  में ,

खामोशी  के  अंतराल  में, 

है  तुमको  सुनने  का  अहसास।

हर  ज़र्रा , हर  गली,

हर  तितली, हर  कली,

हर रोशनी , हर  चमक ,

हर  हवा , हर  महक ,

मुझे  बस  बहा  ले  आती  है ,

बस   उसी  ओर लिये जाती  है, 

जहाँ  तुम  हो , हाँ  सिर्फ  तुम ही  हो।।


-मधुमिता 

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