Sunday 17 April 2016


बेटी



माँ बाबा आज करो ज़रा हिसाब, 

दे दो आज मेरे सवालों के जवाब, 

क्यों भाई को अपना बनाया,

और मुझे सदा धन पराया?


उसके सपने सब तुम्हारे अपने ,

मेरे सपने सिर्फ मेरे सपने,

उससे हर उम्मीद है बांधी

और मैं क्यों हर परंपरा की ज़न्जीर से बंधी?


उसको उङने की दी आज़ादी,

मेरे हर कदम पर पाबंदी,

उससे है जुङाव गहरा,

और मेरी हर हरकत पर पहरा!


भाई तुम्हारे जिगर का टुकङा,

मुस्कुराते देख उसका मुखङा,

मै भी तो हूँ  तुम्हारी जाई,

फिर क्यों तुम्हारा सब कुछ सिर्फ भाई?


क्यों नही देखे सपने तुमने मेरी आँखों से?

क्यों कर दिया अलग मुझे अपनी छाँव से?

देते ज़रा लेने मेरे पंखों को भी उङान,

मै कुछ बनकर दिखाती,बनती तुम्हारी शान।


वंश का वो कुलदीप तुम्हारा ,

बताओ तो क्या नाता हमारा!

क्यों नही मैं तुम्हारा गौरव,मान?

वस्तु की भांति,क्यों कर दोगे मेरा दान?


दुनिया भर के हर अधिकार हैं उसके,

तुम्हारा घर परिवार है उसके,

हर पूजा मे भाग है उसका,

मै तो बस ताकूँ मुंह सबका।


अंतिम यात्रा में भी भाये उसका कांधा,

उसी से प्रेम प्यार का धागा बांधा,

मै भी हूं बेटी तुम्हारी ,

फिर भी ना बन सकी तुम्हारी दुलारी!


मेरे घर का खाना भी पाप,

उसका फिर खाओ क्यों आप?

मेरे प्यार में ना देखी तुमने भक्ति ,

वो क्योंकर देगा तुम लोगों को मुक्ति?


आखिर में अग्नि भी उसकी,

अब भी सुनी ना तुमने मेरी सिसकी,

मेरा भी है तुमपर अधिकार,

तुम भी तो हो मेरा परिवार !


क्यों रखा मुझे दूर,ना माना अपना?

क्यों दुनिया की सुन,मुझको हरदम पराया जाना?

हूँ तो मै अंश तुम्हारा,क्या हुआ जो आई बनकर बेटी,

आज मुझे तुम बताओ कि आख़िर मेरी क्या ग़लती?


-मधुमिता



2 comments:

  1. आज के समाज से सवाल पूछती हुई मन मानस को झझकोरती हुई ह्रदय पटल पर अंकित होने वाली अद्भुत रचना।

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  2. आज के समाज से सवाल पूछती हुई मन मानस को झझकोरती हुई ह्रदय पटल पर अंकित होने वाली अद्भुत रचना।

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