Wednesday 13 April 2016

मिट्टी





जिस मिट्टी को छुटपन में खाना,
उसी मिट्टी में, बचपन में खेलना,
अंत में उसी में है मिश्रित हो जाना ll

लकड़ी की गाड़ी से पईयां पईयां सीखा चलना ,
लकड़ी की मारसे जीवन में हुआ ज्ञान का आना,
अंततः उसी लकड़ी के बीच है फंस के रह जाना ll

जीवन है ,एक एक सांस का लेना,
फूंक फूंक कर कदम उठाना,
एक दिन यूं ही ,उसी सांस को छोड़ जाना ll

तू तू,मै मै, हम, करते बीते जीवन,
तेरा,मेरा, करते जी भी ना सका मन,
कुछ नही तेरा यहां,शरीर भी ये, हो जाएगा हवनll

बस थोड़े की ही जरूरत रे मना,
थाम ,जितने हाथ पा सके तू थामना,
वही बनेंगे तेरे जीवन का आईनाll

मुट्ठी में जिस वायु को लेकर आए, उसे भी है छोड़ जाना,
जिस मिट्टी से खेलें, उसी में अनंत शैया है सजाना ,
लकड़ियां होंगी हमसफर, उन्हें ही हैं हमें विलीन,विमुक्त करना ll

बस इतनी सी है कहानी,
इतना सा ही अफ़साना !
किस बात की लड़ाई,
काहे का बंटना और बांटना!
अंत तो केवल है लकड़ी, मिट्टी और आग,
अब तो झूठी नींद से उठ, ऐ मुसाफ़िर!अब तो जाग ll
-मधुमिता

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