मेरी आरजू
मेरी आरज़ू
बादलों के पीछे से चाँद झांकता रहा ,
खुली आँखों से यूँ ताकता रहा ,
धीमे धीमे , दबे पांव रात चलती रही ,
चांदनी की चिलमन सरकती रही ,
सपनों की महफ़िल सजने लगी ,
रंगीनियाँ यूँ रचने लगी !
शरमा के धीरे से जो लगी थामने
चांदनी को,
आग़ोश में लेने अपने ,
फिसल कर निकल गयी वो आगे
सितारों को छूने ,सोई -सोई सी मै,
अहसासों के घेरे में ,
ज़िन्दगी और ख़्वाबों के फेरे में ,
अलसाई नज़रों से जो
की देखने की कोशिश ,
हकीक़त को अपने
सामने मुस्कुराते पाया ।
जता रहा हो जैसे मुझे ,
सपनो से आगे,
आसमान और भी हैं ,
मेरे सपने , मेरी आरज़ू ,
सब तो यहीं,
इस जहां में हैं।।
©®मधुमिता
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