Wednesday 13 April 2016

मेरी आरज़ू


मेरी आरजू

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मेरी आरज़ू 

 बादलों के पीछे से चाँद झांकता रहा , 
खुली आँखों से यूँ ताकता रहा , 
धीमे धीमे , दबे पांव रात चलती रही , 
चांदनी की चिलमन सरकती रही , 
सपनों की महफ़िल सजने लगी , 
रंगीनियाँ यूँ रचने लगी ! 

 शरमा के धीरे से जो लगी थामने चांदनी को, 
आग़ोश में लेने अपने , 
फिसल कर निकल गयी वो आगे 
 सितारों को छूने ,सोई -सोई सी मै, 
 अहसासों के घेरे में , 
ज़िन्दगी और ख़्वाबों के फेरे में , 
अलसाई नज़रों से जो की देखने की कोशिश , 
हकीक़त को अपने सामने मुस्कुराते पाया । 

 जता रहा हो जैसे मुझे , 
सपनो से आगे, 
आसमान और भी हैं ,
मेरे सपने , मेरी आरज़ू , 
सब तो यहीं,  
इस जहां में हैं।।

 ©®मधुमिता

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