Tuesday 23 July 2019

मौत


सुन सकती हूँ मैं
उन निस्तब्ध पदचापों को
जो धीमे-धीमे बढ़ती हैं
शांत सी 
फिर भी
ख़ामोशी को चीरती 
स्याह चादर में लिपटी
डरा- डरा जाती है
कौन है जो बढ़ा रहा है कदम
अपने मेरी ओर
अहसास होता है
किसी सर्द छुअन का
निर्जीव परंतु जीवित
शिथिल सी पड़ी हूँ
जड़ फिर भी चेतन
मेरा हाथ अपने हाथ में ले
वो तैर गया
रंगीन वादियों में
खुले आसमां में
जुगनुओं संग अठखेली करते
बिना पर के उड़ते-उड़ते
दिशाहीन से 
हर दिशा में विचरते 
हर बंधन से दूर
ना मोह ना माया
ना खून का रिश्ता
ना कोई जरयुनाल
बस हवा 
और हवा से हम
समझ गयी 
कि छूट चुकी हूँ
मुक्त आज़ाद
मुस्कुराये हम
गले लग गयी उसके
थाम लिया मुझको उसने
हाँ थाम लिया मुझको उसने
जिसको सब कहते हैं मौत

©®मधुमिता

Monday 18 February 2019

धूप



हर दरार से झाँकती धूप

हर ज़र्रे को गर्माती धूप 

सरदी को पिघलाती

आँख मिचौली का खेल खिलाती 

सब को कस के गले लगाती

सपनों का बसंत ले आती 

उन ठूँठ सी शाखों पर 

जब बह जाती वो सुनहरी लहर

दुःख से सिहरती लताओं को

बेरंग ठिठुरते तरुओं को   

भर जाती नूतन भावनाओं से

छलकाती नयी तमन्नाओं से 

नव रंग और नव रूप धर नव यौवन 

दिया सबको नया जीवन

सुखमय सब कर जाने को

फिर फिर यूँ खो जाने को

जीवन के पतझड़ में

अनंत के हर पहर में 

उस शून्य को फिर ख़ुद में समेट

उष्णता की चादर लपेट

फिर कोनों से झाँक जाती है

घर आँगन में बिखर जाती है 

सरदी को पिघलाती धूप 

ज़र्रे-ज़र्रे को गर्माती धूप 

हर दरार से झाँकतीं धूप 

  

©®मधुमिता


Monday 11 February 2019

धूप बसंती ...



बसंत की खुशनुमा धूप

झाँकतीं हैं जब किनारों से

झरोखों से और दरारों से

गर्मजोशी से

सौहार्द्रता से सबको गले लगाती 

गालों को सहलाती

स्वागत करती रंगों का

रंगीन दिवास्वप्नों का

क्षितिज पर अब धूप छाँव

खेलने लगीं आँखमिचौली

वृक्ष सब खुशी से थिरकनें लगें

नव किसलय दल मचलने लगें

चूमने सुनहरी किरणों को 

किरणें जो संचरित करती नवजीवन को

हर पर्शुका में दौड़ती

दिल बहलाती

ढाढ़स बंधाती 

क्षणभंगुर ही सही

फिर भी उत्साह बढ़ाती

उत्सव सा उन्माद जगाती

उल्लासोन्माद की सीमा तक

जीवन मंगल का पाठ सिखाती 

खुशियों को जीवंत कर जातीं

आशाओं की किरणों स्वरूप

कैसे यह धूप बसंती 

हर आँगन में खिल खिल जाती।


©®मधुमिता


Saturday 9 February 2019

लखनऊ


हमारा देश, हमारी जन्मभूमि,

ये लखनऊ की सरज़मी,

नन्हीं परी सी आईं जहाँ,

वह सैनिक अस्पताल है यहाँ,

नवाबज़ादी हैं हम इस शहर की,

जो है राजधानी अवध की,

कत्थक की लय पर थिरकती गोमती की हर लहर,

हर सहर, शाम, रात औ दुपहर,

भातखंडे से निकलते सुरीले सुर और तबले की थाप,

तहज़ीब है हमारी साहब, हरदम ख़ुद से पहले आप,

हर शख़्स यहाँ ख़ुद में ही नवाब,

पेश ए ख़ास, बिरियानी और टुन्डे के कबाब,

मिठास यहाँ की मानों शीरमाल, शीरख़ुर्मा 

कुछ तीखापन मानों चटक कोरमा,   

प्रकाश की कुल्फी,

गुलाब सी महकती रेवड़ी,

हज़रतगंज की बास्केट चाट,

विद्यान्त की पूजा का ढाक ,  

छोटी बड़ी लाईनों वाला चारबाग,

मंडी बोलो तो बस कैसरबाग,

नजीबाबाद की चिकनकारी,

अमीनाबाद की वो भीड़ भारी,

निराला नगर है वो प्यारी सी जगह,

नानी हमारी रहती थीं वहाँ,

यादें कई बसतीं हैं अब भी जहाँ,

हर तरफ यहाँ वहाँ,

मनकामनेश्वर का सावन मनभावन,

बारादरी की शान वो शादी, ब्याह और लग्न,

मोहन मार्केट, लवर्स लेन,

तो बंगाली बाबू का एपी सेन लेन,

महानगर ,निशातगंज,

आलमबाग, अलीगंज;

करते शाम को सब गंजींग,

तो सुनिये सुबह को विश्वविद्यालय में,छात्र नेताओं का स्लोगन शाऊटिंग,

कन्टाप लगाते कुछ छात्र मिलेंगे,

झांपड़ रसीदते कई पात्र दिखेंगे ,

भूलभुलैया, रेज़ीडेन्सी की भुतहा कहानियाँ,

हनुमान सेतु के नीचे बहती गोमती की रवानियाँ,

लालकुआँ की पतंगबाज़ी,

तो चौक की हवेलियों की छतों पर कबूतरबाज़ी,

क्या वैसे ही खड़ा है अब भी इश्क के मारों का अड्डा हमारा शहीद स्मारक?

बताइये तो, फूटपाथ पर क्या अब भी बूढ़ी अम्मा लेकर बैठती हैं बेर, रसभरी और कमरख?

कई चित्र आँखों में ठहरे हैं अब भी सपनों से,

ये लखनऊ बसा हुआ है हमारे ही अपनों से,

सजा ये चिकन के कशीदों से,

मंदिर की घंटियो और आज़ानों से,

प्रेम और प्यार के धागे से सबको बांधे,

कला सुर और ताल को खुद ही में साधे,

इसने हर मज़हब को पनपाया,

इंसानियत की खुशबू से, हर दिल को महकाया ,

भाईचारे और मुहब्बत की यहाँ भरमार है,

मलय्यो सा नर्म अद्भुत प्यार है,

बताशों की मीठी खट्टी सी यह तक़रार,

ऐसी हमारी लखनऊ है, मेरे सरकार ।।



©®मधुमिता






Friday 25 January 2019

रात..


फिर एक तारा टूटा

ऊपर आसमान से,

खो जाने को कहीं

सर्द बर्फ़ीले सन्नाटे में,

टूटकर एक पत्ता गिरा 

धरती के विराट सीने पर,

जीवन रूपी वट वृक्ष से,

जो खड़ा एक चट्टान सा,

अचल फिर भी चलायमान,

समय के अथाह सागर में

घर बनाकर,

दूर दूर तक 

जड़ें फैलाकर ,

ख़ुद में ही भू को समेटे,

हर रंग को ,

हर रूप को ,

आयुष्य,

अवसान,

विरह और मिलन को,

उस पत्ते को उठा,

हरियाली से लिपटकर,

रोशन ख़ुद को करते हुये,

टूटे उस तारे को अपनाकर, 

दिनभर की अग्नि को सोख, 

उस सर्द अंधेरी रात को,

उष्णता की चादर ओढ़ाकर।।

©®मधुमिता

Monday 21 January 2019

बसंत


बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा

प्रस्फुटित 

बिल्कुल इस वृक्ष के पत्तों की तरह

लहलहाता 

प्रेम की तरह उर्वर 

जो हर फूल 

हर पत्ते में उपजती है

चमकती है

निखरती है

आलिंगनबद्ध कर लेती है  

नाम लिख जाती है अपना 

बसंत के हर पोर में 

नाम मेरा 

और तुम्हारा 

फिर झूल जाती है 

लताओं से

कभी चढ़ती हुई

बेल को छूती 

आसमान तक बढ़ जाती है 

और फूल बन

बिखर जाती है कई रंगों में

समा जाती है मेरे नस नस में

बहती हुई बसंत संग 

चाहती है वो देखना

बसंत को मुझमें बसते हुये 

चिरयौवन सा रूप धर

यह बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा

©®मधुमिता

Thursday 17 January 2019

रात का आलम...


गुम सी हो चली हूँ

इस रात के आग़ोश में

चुप हम और चुप तुम

दोनों ख़ामोश से


शब कुछ ज़्यादा सुरमई है

दो नैनों की रोशनी बिना

आँखों के काले काजल से 

रात ने ख़ुद को है छीना


अंधेरे ने चादर फैलाई

चुपके से आ मुझको घेरा 

मैं ढूंढ़ रही थी तब सन्नाटे में

अपना सा दामन तेरा 


ये रात मेरी

ये अंधियारा मेरा

ढूंढ़ती हूँ फिर भी हर पल

वो मुस्कुराता साया तेरा


थम जाऊँगी तेरे पलकों पर आ

जी जाऊँगी एक पूरा जनम

गुम होने को फिर एक बार

चुराकर इस रात का आलम 


©®मधुमिता

Friday 11 January 2019

इंतज़ार तुम्हारा



देख रही थी मैं

खुली खिड़की से,

दूर चमचमाते 

उस चंदा को,

सलेटी रात के

आँचल में टँके

पुखराज सा,

इस दुनिया को 

सम्मोहित करता,

और ठीक उसी के नीचे

इस धरा पर वह पलाश, 

सुर्ख़ लाल से लदी फदी

उसकी वह डाली,

रक्तरंजित सी,

आभामय,

रोशनी में नहाई,

मुस्कुराई

जब छू गयी हवा

त्रिपर्णा को

और फिर चुपके से

आ गयी खिड़की पर मेरे,

घुस आई वो अंदर,

छुआ उसे मैने,

रोका भी,

पर वो चली धीमे धीमे

धीमी धीमी आग की ओर,

उन जलती बुझती शाखों पर,

मुस्कुराती डोलने लगी वो,

ठंडी पड़ती शोलों को

भरने लगी गर्माहट से,

जो माँग लाई थी चंदा से,

कुछ लाली पलाश की भी

उसने उड़ा दी,

कुछ खुशबू फ़िज़ा की 

घोल गयी वो,

कुछ तिलस्म वो कर गयी,

ना जाने कैसे

उन सुलगती शाखों पर,

सपनों के कुछ नाव तैराकर

तुमसे मुझको जोड़ गयी,

चंदा ने बांधा था जो पुल तुम तक

उस तक मुझको ले चली वो,

हाँ ले चली वो तुम तक, 

जब समय की राख पर 

बैठकर कर रही थी 

मैं इंतज़ार तुम्हारा।


©®मधुमिता

Tuesday 8 January 2019

गीत कई...



चलो तुम्हें वो सारे गीत सुनाऊँ
जो लिखें थे मैंने 
जब  तुम गुम थीं 
स्वप्न लोक में
ख़्र्वाबों के रंगीन बिछौने पर 
मेरे बाँहों के सिरहाने पर
संभाली हुई
सुरक्षित सी
और लिख डाले मैंने गीत कई
जब तक सूरज चढ़ आया था
सहलाने लगा था चेहरे को तुम्हारे

मैं मेघ बन ऊपर उड़ आया
आसमां से सितारे चुरा लाया
उस गर्वित निष्ठुर पर्वत को 
हथेली पर उठा लाया
अर्पण तुमको करने को
श्रृंगार तुम्हारा करने को
देख तुम्हारी आँखों में
जुगनुओं की रोशनी तले
फिर लिख डाले मैंने गीत कई
हर जीत का हर पल बल पाकर 
इन दो नयनों में तुम्हारे

रंग डाला उस आसमान को
तुम्हारे अधरों की लाली से
जो चुरा लाया था तब
जब मुस्कान बिखेर रही थीं तुम
उस रंग-बिरंगी तितली सी 
सुन्दर एक परी सी
पंखों को अपने फैलाये
इन्द्रधनुषी छटा बिखेर रही थीं जब तुम
तब लिख डाले मैंने गीत कई
गुनगुनाता अल्हड़ भँवरे सा 
कई रस तुमसे ही चुराकर तुम्हारे

चलो ना हम दो उड़ चलें
एक तुम और एक मै
सात समंदर तेरह नदियों के पार कहीं
बादलों का एक द्वीप बसायें
एक दूजे में खो जायें
ज्यों मेरे शब्द और स्वर
एक दूजे के पूरक बन जायें
फिर इन दो आँखों में ख़ुद को खोकर 
लिख डालूँ मैं गीत कई
सुन्दर कोमल नाज़ुक से
सपनों के रंगों से तुम्हारे 

©®मधुमिता

Tuesday 1 January 2019

नया साल


नया साल
नये लोग
नयी राहें
कुछ चाहे 
कुछ अनचाहे
साथ चल पड़ी
कुछ पुरानी यादें
कुछ अधूरे वादे
कई टूटे सपने
कुछ ताकतीं हकीकतें
जीवन की भूलभुलैया
आँकी-बाँकी कितनी गलियाँ 
आकांक्षाओं की बावड़ियाँ
इच्छाओं की नाज़ुक पोटलियाँ
कुछ धूसर से भय 
सतरंगी कई आशायें
बिखरे हुये रंग कई
और एक बेरंग कैनवास नया
जो तैयार खड़ा है रंग जाने को
एक नयी तस्वीर बनाने को
नयी कहानी सुनाने को
नया इतिहास बनाने को

©®मधुमिता
नव वर्ष

नव वर्ष है
नूतन किरणें

पुष्प भी सब नये नये

नव किसलय दल

नूतन कलियाँ

ओस की बूँद भी नयी नयी

सब कुछ अब नया नया सा हो

पुरातन की छाँव तले

नव निर्माण हो

नयी उड़ान हो 

कुछ परवान नये

कुछ परवाज़ नये

नूतन गान हो

नव जीवन की तान हो

नूतन गाथायें 

नव सृजन करती कईं कवितायें

प्रेम हो सम्मान हो

हर जीव का मान हो

ये नया वक्त मुबारक हो 

ये नव वर्ष मुबारक हो 

©®मधुमिता