Friday 21 December 2018

सर्दी


द्रुत गति से किरणें फिसल गयीं
दिन के आँचल तले,
चमकती, थिरकती
धीमे से सिमट गयीं 
कोहरे के चादर तले,
कोहरा जो गुनगुनाते हुये
छू आया था वृक्षों के शिखर
और एक लम्बी रात बन 
तन गया है आसमां पर,
सन्नाटे से भरी रात,
ख़ामोशी बोल रही है
मद्धम सुर में,
अनदेखा अनचाहा सा अहसास
सर्द हो चला है,
बर्फ़ सा जम रहा है,
सर्दी की ठिठुरन
रेंग रही है खूँ में अब,
घुल रही है हवाओं में
उस धुँये संग
जो जलते पुआल से आई है,
देखो तो ख़ानाबदोशों ने कैसे
शीत को आग दिखाई है,
कहीँ कोई पिल्ला रोया,
शायद ढूंढ़ रहा है
माँ के गरम तन को,
कीट पतंगे जड़ जम गये
दुबके कहीं अमराई में,
श्वास भी अब पिघल रही है
ठंडे खिड़की किवाड़ों में,
देख कुदरत का कहर
इस धुंधली रात के हर पहर,
चाँदनी भी ज़ार ज़ार रो आई
और बूँद ओस की बनकर
सर्द होते पत्ते से वो 
देखो कैसे लिपट गयी ।
  
©®मधुमिता
जाड़ा


जाड़ा है भाई जाड़ा है
बर्फीला करारा है
हवा लगे बर्फ का कतरा
आसमां भी देखो आज है ठिठुरा
सर्द धार ऐसी कि कट रहे हाथ
बेदम लम्बी है आज की रात
अलाव जला लो
पुआल जमा लो
अहसासों की गरमाहट से
इंसानियत के औजारों से
इस रात को थोड़ा नर्म कर दो
चलों इस जाड़े को ज़रा गर्म कर दो  

 ©®मधुमिता

Tuesday 18 December 2018

मैने रात को टूटते हुये देखा है


मैने रात को टूटते हुये देखा है,
देखा है उसे बिखरते हुये,
शिकस्त खाते हुये
इन रोशनियों से,
छुपती, छिपाती,
फिर उस माहौल को 
खुद में समेट,
यकायक ,
ज़मीं पर उसको बरसते देखा है,
अवदाह सी,
भीषण अग्नि बनने को,
बनने को एक विराट दावानल
अहसासों की,
अनुभूतियों की,
चंचल और अदम्य
लपटों सी,
पाने को आतुर,
वो खोया आसमाँ,
जो पास नही था,
था बेहद दूर,
फिर थक कर,
चूर चूर हो,
धरती के माथे पर, 
पसीने की मानिंद,
उसको सजते देखा है,
सुबह सवेरे 
नन्ही सी
उस ओस की बूँद में,
उसे सिमटते देखा है,
हाँ, मैने रात को टूटते हुये देखा है।।

©®मधुमिता

Sunday 9 December 2018

जाने वाले...



जाने वालों से क्या गिला

और क्या ही शिकवा,

जाने वाले तो चले जाते हैं

ना जाने कहाँ!

ना तो वो कैद हो पाते,

ना ज़़ंजीरों में जकड़े जाते,

जाने वाले चले जाते हैं,

फिर मुड़कर नही आते हैं,

यादों को उनकी सहेज लो,

प्यार से उनको समेट लो,

इन यादों में उन संग चलो हँस लें,

खेलें ज़रा, ठिठोली कर लें,

यादों संग उनको जी जाओ,

संग अपने सदा पाओ ,

जाने वालों से क्या याराना,

क्यों उन संग दिल लगाना,

चलो अब मुस्कुराओ,

कदमों को आगे बढ़ाओ,

जाने वाले तो कब के चले गये,

बस यादों की गठरी छोड़ गये!!


©®मधुमिता



Saturday 8 December 2018

ना जाने कब
.
.

वक्त गुज़रता रहा

मन मचलता रहा

सपने बुनने लगी मैं

ख़ुद में खोने लगी मैं

थोड़ी साँवरी

ज़रा बावरी

बेपरवाह सी

अतरंगी सी

बेधड़क

बेफ़िकर

थोड़ी नाज़ुक सी

मेरे माशुक सी

ना जाने कब 

मुहब्बत जवाँ हो गयी

रोका किये मगर अब, 

नज़रों से बयाँ हो गयी...

©®मधुमिता

Thursday 6 December 2018

रात


रात को देखो तो ज़रा
कैसे खो सी गयी है !
तुम्हारे इर्द गिर्द लिपट,
रोशनी में तुम्हारी
सराबोर हो,
गुम हो रही है
तुम्हारी आँखों में,
इन दो नयनों के काजल मे,
झुकी पलकों के पीछे
चुपके से छिपकर ,
एक टक तुमको 
बस निहारती है,
चाहती है तुमसे बतियाना,
खूब हँसना 
और खिलखिलाना,
पर डरती है
तुम्हे डराने से,
इसीलिये बस घेरे रहती है,
पूरे पहर जाग जागकर,
फिर भोर तले 
गुम हो जाने को,
वापिस से फिर 
एक तिमिर में,
तुम मे ही खो जाने को ..!

©®मधुमिता