Monday 18 February 2019

धूप



हर दरार से झाँकती धूप

हर ज़र्रे को गर्माती धूप 

सरदी को पिघलाती

आँख मिचौली का खेल खिलाती 

सब को कस के गले लगाती

सपनों का बसंत ले आती 

उन ठूँठ सी शाखों पर 

जब बह जाती वो सुनहरी लहर

दुःख से सिहरती लताओं को

बेरंग ठिठुरते तरुओं को   

भर जाती नूतन भावनाओं से

छलकाती नयी तमन्नाओं से 

नव रंग और नव रूप धर नव यौवन 

दिया सबको नया जीवन

सुखमय सब कर जाने को

फिर फिर यूँ खो जाने को

जीवन के पतझड़ में

अनंत के हर पहर में 

उस शून्य को फिर ख़ुद में समेट

उष्णता की चादर लपेट

फिर कोनों से झाँक जाती है

घर आँगन में बिखर जाती है 

सरदी को पिघलाती धूप 

ज़र्रे-ज़र्रे को गर्माती धूप 

हर दरार से झाँकतीं धूप 

  

©®मधुमिता


Monday 11 February 2019

धूप बसंती ...



बसंत की खुशनुमा धूप

झाँकतीं हैं जब किनारों से

झरोखों से और दरारों से

गर्मजोशी से

सौहार्द्रता से सबको गले लगाती 

गालों को सहलाती

स्वागत करती रंगों का

रंगीन दिवास्वप्नों का

क्षितिज पर अब धूप छाँव

खेलने लगीं आँखमिचौली

वृक्ष सब खुशी से थिरकनें लगें

नव किसलय दल मचलने लगें

चूमने सुनहरी किरणों को 

किरणें जो संचरित करती नवजीवन को

हर पर्शुका में दौड़ती

दिल बहलाती

ढाढ़स बंधाती 

क्षणभंगुर ही सही

फिर भी उत्साह बढ़ाती

उत्सव सा उन्माद जगाती

उल्लासोन्माद की सीमा तक

जीवन मंगल का पाठ सिखाती 

खुशियों को जीवंत कर जातीं

आशाओं की किरणों स्वरूप

कैसे यह धूप बसंती 

हर आँगन में खिल खिल जाती।


©®मधुमिता


Saturday 9 February 2019

लखनऊ


हमारा देश, हमारी जन्मभूमि,

ये लखनऊ की सरज़मी,

नन्हीं परी सी आईं जहाँ,

वह सैनिक अस्पताल है यहाँ,

नवाबज़ादी हैं हम इस शहर की,

जो है राजधानी अवध की,

कत्थक की लय पर थिरकती गोमती की हर लहर,

हर सहर, शाम, रात औ दुपहर,

भातखंडे से निकलते सुरीले सुर और तबले की थाप,

तहज़ीब है हमारी साहब, हरदम ख़ुद से पहले आप,

हर शख़्स यहाँ ख़ुद में ही नवाब,

पेश ए ख़ास, बिरियानी और टुन्डे के कबाब,

मिठास यहाँ की मानों शीरमाल, शीरख़ुर्मा 

कुछ तीखापन मानों चटक कोरमा,   

प्रकाश की कुल्फी,

गुलाब सी महकती रेवड़ी,

हज़रतगंज की बास्केट चाट,

विद्यान्त की पूजा का ढाक ,  

छोटी बड़ी लाईनों वाला चारबाग,

मंडी बोलो तो बस कैसरबाग,

नजीबाबाद की चिकनकारी,

अमीनाबाद की वो भीड़ भारी,

निराला नगर है वो प्यारी सी जगह,

नानी हमारी रहती थीं वहाँ,

यादें कई बसतीं हैं अब भी जहाँ,

हर तरफ यहाँ वहाँ,

मनकामनेश्वर का सावन मनभावन,

बारादरी की शान वो शादी, ब्याह और लग्न,

मोहन मार्केट, लवर्स लेन,

तो बंगाली बाबू का एपी सेन लेन,

महानगर ,निशातगंज,

आलमबाग, अलीगंज;

करते शाम को सब गंजींग,

तो सुनिये सुबह को विश्वविद्यालय में,छात्र नेताओं का स्लोगन शाऊटिंग,

कन्टाप लगाते कुछ छात्र मिलेंगे,

झांपड़ रसीदते कई पात्र दिखेंगे ,

भूलभुलैया, रेज़ीडेन्सी की भुतहा कहानियाँ,

हनुमान सेतु के नीचे बहती गोमती की रवानियाँ,

लालकुआँ की पतंगबाज़ी,

तो चौक की हवेलियों की छतों पर कबूतरबाज़ी,

क्या वैसे ही खड़ा है अब भी इश्क के मारों का अड्डा हमारा शहीद स्मारक?

बताइये तो, फूटपाथ पर क्या अब भी बूढ़ी अम्मा लेकर बैठती हैं बेर, रसभरी और कमरख?

कई चित्र आँखों में ठहरे हैं अब भी सपनों से,

ये लखनऊ बसा हुआ है हमारे ही अपनों से,

सजा ये चिकन के कशीदों से,

मंदिर की घंटियो और आज़ानों से,

प्रेम और प्यार के धागे से सबको बांधे,

कला सुर और ताल को खुद ही में साधे,

इसने हर मज़हब को पनपाया,

इंसानियत की खुशबू से, हर दिल को महकाया ,

भाईचारे और मुहब्बत की यहाँ भरमार है,

मलय्यो सा नर्म अद्भुत प्यार है,

बताशों की मीठी खट्टी सी यह तक़रार,

ऐसी हमारी लखनऊ है, मेरे सरकार ।।



©®मधुमिता