धूप
हर दरार से झाँकती धूप
हर ज़र्रे को गर्माती धूप
सरदी को पिघलाती
आँख मिचौली का खेल खिलाती
सब को कस के गले लगाती
सपनों का बसंत ले आती
उन ठूँठ सी शाखों पर
जब बह जाती वो सुनहरी लहर
दुःख से सिहरती लताओं को
बेरंग ठिठुरते तरुओं को
भर जाती नूतन भावनाओं से
छलकाती नयी तमन्नाओं से
नव रंग और नव रूप धर नव यौवन
दिया सबको नया जीवन
सुखमय सब कर जाने को
फिर फिर यूँ खो जाने को
जीवन के पतझड़ में
अनंत के हर पहर में
उस शून्य को फिर ख़ुद में समेट
उष्णता की चादर लपेट
फिर कोनों से झाँक जाती है
घर आँगन में बिखर जाती है
सरदी को पिघलाती धूप
ज़र्रे-ज़र्रे को गर्माती धूप
हर दरार से झाँकतीं धूप
©®मधुमिता
हर दरार से झाँकती धूप
हर ज़र्रे को गर्माती धूप
सरदी को पिघलाती
आँख मिचौली का खेल खिलाती
सब को कस के गले लगाती
सपनों का बसंत ले आती
उन ठूँठ सी शाखों पर
जब बह जाती वो सुनहरी लहर
दुःख से सिहरती लताओं को
बेरंग ठिठुरते तरुओं को
भर जाती नूतन भावनाओं से
छलकाती नयी तमन्नाओं से
नव रंग और नव रूप धर नव यौवन
दिया सबको नया जीवन
सुखमय सब कर जाने को
फिर फिर यूँ खो जाने को
जीवन के पतझड़ में
अनंत के हर पहर में
उस शून्य को फिर ख़ुद में समेट
उष्णता की चादर लपेट
फिर कोनों से झाँक जाती है
घर आँगन में बिखर जाती है
सरदी को पिघलाती धूप
ज़र्रे-ज़र्रे को गर्माती धूप
हर दरार से झाँकतीं धूप
©®मधुमिता