Wednesday 13 April 2016

सहेली हूं मैं खु़द की

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कैसी है ये उलझन,
एक अजीब सी तड़पन,
सब हैं,फिर भी सूनापन,
दिखता नही क्यों अपनापन?
आख़िर कौन है ,जो है मेरा दुश्मन!

हर एक की हां पर,हां मैं कहती गई,
जिसने जो बोला, हरेक की सुनती गई,
किसी के दुःख सह सकती नही,
अपने सुख की सोची नही l

हाथ पकड़ सबको राह रही दिखाती,
आज कदम मिलाने को ,पीछे हूं भागती,
मै क्या हूं, किसकी हूं,कुछ ना पता,
हरपल एक अनजाना सा डर रहता सता l

एक अनहोनी की आशंका कर रही है घर,
किसी अनसुने आहट की कदमों का डर,
कहां खो गये तुम सब ,मेरे अपने,
पुराने दिन बन गये ,बस ,महज़ सपने l

हर रिश्ता, हर बंधन बस ढूंढती हैं खा़मियां,
रिश्तों के लेन-देन में, कम पाया,ज़्यादा खोया,
कड़वे बोल,नम आंखें,भर्राई आवाज़ ,है मेरी धरोहर,
नही, नही कर सकती अब ,खुद पर और अत्याचार l

हां मैनें किया है अब प्रण,
खुश रहेगा अब मेरा मन,
ना भागूंगी,ना दौड़ूंगी,
जो चलना चाहे कोई साथ मेरे,तो साथ चलूंगी l

जो खुश रहेगा साथ मेरे,जीवन उसका खुशियों से भर दूंगी,
खुशियों के मोतियों से ,अब दामन अपना भर लूंगी,
दुनिया चले अपनी राह, राह मैंनें अपनी बदल ली है,
सशक्त हो गयी हूं शायद, अपने ही सांचे में ढल ली हूं मैं l

हां थी, मैं खु़द , अपनी ही दुश्मन ,
अब सिर्फ करूंगी वही ,जो चाहेगा  मेरा मन,
ना कोई शक,ना उलझन,ना ख़ुद से कोई अनबन,
अब सहेली हूं मैं खु़द की, नही बनूंगी अब अपनी दुश्मन ।।

-मधुमिता

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