Monday 24 July 2017

मनचला चाँद



देखो ना! ये चाँद रोज़ रात आ धमकता है,
खिड़की से मुझे रोज़ तकता है,
कितना भी मै नज़रें चुराऊँ, 
पर्दे के पीछे छुप जाऊँ,
फिर भी नही हारता है,
हर कोने से झाँकता है।

चाँदनी से छिप-छिप कर,
धीमे-धीमे रुक-रुक कर,
बादलों के पीछे से निकलता है,
आँख-मिचौली खेलता है,
कभी धीमे से छूकर,
आँख मारकर,
मुझे छेड़ वो जाता है,
फिर मंद मंद मुस्कुराता है।

किस से करूँ शिकायत इसकी,
चाँदनी भी तो मतवारी इसकी,
मनचला, बावरा, 
दिलफेंक, आवारा, 
देखो ना! चाँद ने मुझे आज फिर आँख मारी,
अब मै इसे दे दूँगी गारी,
क्या आज चाँदनी घर नही क्या?
कितना निर्लज्ज है उसका चाँद, बेशर्म, बेहया!!
 
©®मधुमिता

Saturday 22 July 2017

तीज


झूलों की पींगों संग मीठी सी बौछार,
बादलों की थाप पर गायें मेघ मल्हार,
चूड़ी, कंगन, बिंदिया,
मेहंदी, पायल, बिछिया,।

सुर्ख सी होठों की लाली,
झूमती, डोलती कानों की बाली,
सिंधारा संग श्रृंगार, 
कितना मनोरम सखी तीज का ये त्योहार।

मीठे गीतों की बहार,
संग तुम सखियों की छेड़छाड़, 
दुल्हन सी बन करती हूँ प्रार्थना,
देवी पार्वती की आराधना।

"उनकी" सलामती मै चाहती हूँ,
हाथ जोड़ बस यही माँगती हूँ,
मालपुओं और घेवर की खुश्बू, 
देखो अब आ गई है मुझको।

गोटे की चूनर संभालती,
खूब खुश होकर, नाचती गाती,
पीहु पीहु बोला कहीं पपीहरा, 
याद आ गई अब तुम्हारी साँवरिया।

तुम ही तो हो पिया मेरा अनमोल जेवर,
जल्दी से आ जाओ अब पीहर,
संग-संग तीज मनायेंगे,
फिर अपने घर को जायेंगे।।

©®मधुमिता

Friday 21 July 2017

चार दीवारी को क्या घर कहें !
तेरे दिल का इक कोना ही मयस्सर हो
शाम औ' सहर!
 ©®मधुमिता

Friday 14 July 2017

रिश्ता



दूर नज़दिकियाँ,
तंग सी दूरियाँ,
क्या है तुझसे वास्ता,
जुदा जुदा फिर भी वाबस्ता,
कैसा ये राबता?
है अजब सा ये रिश्ता।।

©®मधुमिता

भारतीय रेल




बचपन कि छुकछुक गाड़ी,
कितनी अनोखी ये रेलगाड़ी,
मुंबई से इलाहाबाद, 
कोलकाता से अहमदाबाद, 
ताबड़तोड़ यह दौड़ती है,
कभी नही फिर भी थकती ये,
सभी को यह अपनाती,
सब को खुद मे यह समाती,
हिंदू , मुस्लिम,
सिख, ईसाई, 
आपस में सब भाई-भाई,
इसने यही बस जाना है,
सबको अपना माना है,
प्लेटफाॅर्म पर रुकती थमती, 
सबको गंतव्य तक पहुँचाती,
जम्मू या कन्याकुमारी,
रायपुर हो या देवलाली, 
कानपुर के लाला जी,
तमिलनाडु की माला जी,
चाचा चाची,
काका काकी,
ताऊ ताई, 
दीदी और भाई,
कितने रिश्ते बन जाते हैं,
जब बैठ इसमें सब मिल रोटी खाते हैं,
दूर देशों की सैर कराती,
यात्रियों को भ्रमण करवाती,
छू-छू जाती खेत खलिहान, 
जंगल, बीहड़, चाय बागान,
चलती जाती भारतीय रेल,
करवाती दिलों के मेल,
लाल और नीले डब्बों के साथ,
चलायमान देखो छुकछुक गाड़ी,हर दिन रात।।

©®मधुमिता

Thursday 13 July 2017

बौछार



शीशे के उस ओर
जल का ये कैसा शोर!
थल भी है जलमग्न ,
प्यासी धरती की बुझ गयी अगन l 

बादल खेलें अठखेलियाँ ,
वृक्ष तरु सब हमजोलियाँ ,
पन्नों से चमचम करते हैं पत्ते,
बूँदों की लय पर थिरकते।

हर चीज़ बहती जाती है,
मदमस्त पवन भी सुनो गाती है,
सब कुछ है साफ, धुली धुली,,
सद्य स्नाता सी उजली उजली।  

शीतल कर जाती बूँदों की बौछार,
काले गहरे घन करे पुकार,  
छूने को अातुर ये मस्त मौला मन ,
हर पल रंग बदलता,नटखट सा ये गगन ।।

©®मधुमिता

Saturday 8 July 2017

ख़्वाब हो तुम...


बंद करती हूँ मै जब ये आँखें तुम्हारे बग़ैर,
हर तरफ स्याह सा होता है शामो सहर,
जब खोलती हूँ मै ये आँखें तुम्हारे संग,
तो दुनिया में भर जाते हैं कितने लुभावने रंग,
तुम्हारे बग़ैर मानो अंधी सी हो जाती मै,
तुम्हारे होने से  सोई दुनिया भी जाग जाती है,
सितारे टिमटिमाते हैं,
लाल, नीले अनेकों रंग अलापते हैं,
तभी अचानक कहीं काले बादलों के घुड़दौड़ सा,
मनमाना अंधेरा मेरी ओर पलटता,सरपट चौंकड़ियाँ भरता,
सम्मोहित सी मै
तुम्हारे बाँहों के घेरे मे,
ख़्वाबों की नगरी मे फिरती,
इधर उधर तितली सी उड़ती,
दीवानी सी तुम्हारे आग़ोश मे,
इक पगली सी, मोहपाश मे,
अचानक आया था एक बादल काला,
सब कुछ बस धुंधला कर डाला,
छोड़ गया मुझे अकेला हर इंसान,
क्या फरिश्ता और क्या शैतान,
मै गुमां करती रही कि तुम आओगे,
एक दिन मुझको संग ले जाओगे,
पर ना तुम आये ना तुम्हारा साया,
सबने मुझको समझाया
पर मै ना मानी,
दिल ने बस तुम संग ही जाने की ठानी,
अब तो अरसे बीते, उम्र हो चली है,
नाम भी तुम्हारा देखो भूल चली मै,
काश मुझे तूफ़ानों से मुहब्बत होती,
बिजली की धमक से मैने आशिकी की होती,
तो हर बादल संग वे आते,
हवाओं संग मुझे ले जाते,
बारिश के पानी से भिगो जाते,
तन और मन सराबोर कर जाते।

तुम हो भी कि नही हो!
या सिर्फ मेरे दिमाग़ की एक उपज हो,
आँखें मूंदते ही ये जग सारा सो जाता है,
अंधियारे में कहीं खो जाता है,
हाँ तुम ख़्वाब हो शायद,
बस कल्पना मात्र हो शायद,
एक कारीगरी मेरे ज़हन का,
वजह मेरी पशोपेश और उलझन का,
नही! पर तुम ही तो मेरी हकीकत हो,
क्यों नही मान पाती कि तुम नही हो?
देखो ना अब भी, बंद करती हूँ मै जब ये आँखें तुम्हारे बग़ैर,
हर तरफ स्याह सा होता है शामो सहर,
जब खोलती हूँ मै ये आँखें तुम्हारे संग,
तो दुनिया में भर जाते हैं कितने लुभावने रंग ।।

©®मधुभिता

 

Saturday 1 July 2017

ज़ख़्म...


आँखों का नमक चीसता है,
दिल का दर्द टीस देता है,
एक हूक सी उठती है,
कसक सी दे जाती है,
ज़ख़्म सारे हरे से हैं देखो,
ना सूखते हैं, ना मुरझाते हैं ये देखो,
ना जाने कौन कम्बख़्त इनको पानी और चारा देता है?
ये नमकीन पानी जो बहता हैं इन दो आँखों से, क्या यही इनको जीवनदान देता है?  
इस बेरहम दर्द को ज़रा रोका जाये,
कुछ मीठे पलों की यादों से सेंका जाये,
चलो कुछ देर इन आँखों को मूंदा जाये,
कुछ नासूर से ज़ख़्मों को भूला जाये ।।

©मधुमिता