चलो ना अब जाने दो!
चलो ना अब जाने दो!
एक घाव ही था
देखो ना, अब भर गया,
बहा था खून बहुत,
आँसू भी बहे थे खूब,
पर देखो तो, अब तो सब सूख गये,
हाँ, टीस तो बहुत है अब भी,
दर्द भी उठता है,
हल्का सा निशां भी एक रह जायेगा,
पर बस इतना भर ही;
यही तो जीवन है,
मिलना, बिछड़ना,
कभी ठोकर खाना,
कभी चोटिल होना,
सब लेकिन किंचित हैं,
यथार्थ पर क्षणिक ,
बस रह जाती हैं कुछ यादें
धुंधली धुंधली सी
उस ज़ख़्म के निशां में,
तो अब व्यर्थ ही क्यों
तुम यू आँसू बहाती हो ?
छोड़ो अब इस सूखे घाव को कुरेदना,
चलो ना अब जाने दो!
©®मधुमिता