Monday 30 January 2017


ऋतु बसंत की




ठंडी हवाओं में ऊष्मा का अहसास, 
सर-सर बहती हवाओं में, मीठी सी थाप,
सर्द पाले की छाती को चीर, 
मुस्कुराती ओस की बूंद,
बांझ सी ठूंठ के गर्भ से फूटते
नवीन कोंपल, 
नव किसलय दल,
रंगबिरंगी फूलों का खिलना,
गुनगुन करते भौरों का मचलना,
इतराती, शोख तितलियाँ, 
शीत निद्रा से जागते,
उड़ते फिरते पशु पक्षी,
शीतकाल की ठिठुरती शांति जब
बन जाती मधुर गीत,
धरती हुई हरी भरी, लहलहाती, 
हरी घास भी सुनो खुशी से खिलखिलाती,
सुनो बसंत के पदचाप को,
कोमल, मधुर, पायल की झंकार सी,
अपने आँचल को फहराकर
रंगीनियाँ फैलाती,
रुमानी सी,
खुशियों की पिटारी,
रंगीन, रसीली,
थोड़ी चुलबुली, 
प्रजननक्षम,  
ऋतु बसंत की ।।

©मधुमिता

Saturday 28 January 2017


सुरमई सी शाम


नीलम सा आसमां,
पुखराजी चंदा,
हीरे से चमकते सितारे,
मोती से बेला के फूल
दमकते हुए, हरे पन्ने 
जैसे पत्तों के बीच,
उसपर बैठी
स्फटिक सी सौम्यता लिए 
ओस की खूबसूरत एक बूंद,
गुलाबी तुरमली सी शरमाती,
माणिक से लाल अहसास,
जीवंत, रुधिर से प्रवाह 
मे बहते हुए, दो प्रेममय दिल,
चांदी के चिलमन से झांकती
सुलेमानी सी,
पुरजोश शाम,  
कुछ मुंगई सपनों की
सुरमई सी शाम....!

©मधुमिता

Saturday 14 January 2017


एक नन्ही सी चींटी हूँ मै..




सतर्क हूँ, 
सावधान हूँ मै,
चौकन्नी 
और फुर्तीली, 
छोटी हूँ,
पर अपने से तिगुना बल ढोती हूँ,
पहाड़ों पर चढ़ती,
धरती के भीतर चलती,
गिरती,
खुद सम्भलती, 
उठती,
फिर आगे को चलती,
अकेले में,
या हो मेले में,
अपनी मंज़िल की ओर
अग्रसर, 
धीमे-धीमे,
छोटे -छोटे कदम रखते,
चाहे फिर मौसम बदले,
या समय करवट ले,
अपने निश्चय पर स्थिर,
अडिग और दृढ़,
धीर,संतुलित, 
निकली हूँ खुद को करने साबित,
पत्थरों को छेद दूँगी,
अड़चनों को भेद दूँगी,
नही हूँ मुखर,
किंतु हूँ प्रखर,
ऊँची दीवारें लांघ कर,
बाधाएँ सारी फांद कर,
गगनचुंबी मीनारों पर चढ़
उनको जय कर,
हाथी से बलशाली को दे मात,
चलती चलूँ मै दिन और रात,
मंज़िल को पाकर ही दम लूँ,
सुस्ताऊँ या थम लूँ,
खुद ही अपनी मीत हूँ मै, 
निरंतर गूंजता गीत हूँ मै,
खुद्र सी आपबीती हूँ मै,
एक नन्ही सी चींटी हूँ मै....।।

©मधुमिता

Wednesday 4 January 2017

गया साल!



बच्चों की मुस्कान सा मासूम, 
खिलखिलाता,
किलोल करता,
गया साल!

कभी आँसुओं का नमक,
कभी मीठी सी कसक, 
कई अरमान जगा गया,
गया साल!

कभी हँसाता, 
कभी रुलाता,
गुलाबी गुदगुदाहट,
गया साल! 

हाथों से नाक पोंछता बालक,
रौबीला, गबरू जवान,
झिझकती सी नवयौवना, 
गया साल!

अनगिनत सपने, 
सैंकडों अपने,
हज़ारों आस,
गया साल! 

उम्मीदों का दामन,
ममता भरा आँचल,
प्यार भरा आलिंगन,
गया साल!

सितारों की चमक
आँखों में, नव वधू की दमक,
दसियों जज़्बातों में भिगो गया,
गया साल!

फूलों की महक,
पंछियों की चहक,
मौसम की अंगङाई,
गया साल! 

सुर्ख लाल पके टमाटर सा
रंगीन, 
टपकने को था बेकरार,
गया साल!

पकती रोटी की सोंधी खुशबू 
चटनी की चटखार,
रबङी-मलाई सी रसीली,
गया साल!

©मधुमिता