एक प्याली सुनहरी सी चाय
और हजारों यादें,
इस गर्म भाप संग उड़ती हुईं
यहीं हमारे आसपास,
सैकड़ों अनकहे शब्द,
बेशुमार अहसास,
नर्म, नाज़ुक से
हर चुस्की के साथ
चाशनी सी घोलती हुईं,
रसमाधुरी से पल,
अल्हड़ सी,
मदमस्त,
कभी फुसफुसाती,
कभी खिलखिलाती,
हर घूंट संग गुदगुदाती,
रंग-बिरंगे दिन पुराने,
सोने की सी सुबहें,
बादामी सी शामें,
जब वर्तमान में टेक लगाकर
भविष्य की घड़ियाँ जी आते थे ,
कमसिन से ख़्वाब हम सजाते थे,
खाली हुई प्याली में भी जब
कल्पनाओं के गोते लगाते थे,
उन दिनों को अब खोजते हैं,
खोजते हैं यहीं हम दोनों,
मैं और मेरे ये नादान से जज़्बात,
इस नर्म गर्म सी प्याली में
मुस्कुराती सी चाय में
खोजते हैं बीते पलों के अक्स को,
कमज़र्फ सा वो वक्त जो
शक्कर सा यूँ घुल-मिल कर,
सपने सा ना जाने कहाँ ग़ुम हो गया!!
©®मधुमिता