इस भरी सी महफ़िल मे
गुलुकार बेहतरीन मिले,
झूठी तारीफ़ें भी मिली,
बस सच्चा कोई सामईन ना मिला !!
©®मधुमिता
इस भरी सी महफ़िल मे
गुलुकार बेहतरीन मिले,
झूठी तारीफ़ें भी मिली,
बस सच्चा कोई सामईन ना मिला !!
©®मधुमिता
यादों के दरख़्त
खुशबू से होते हैं
मन को महकाते हैं
और आत्म से
वे लिपट लिपट जाते हैं
मेरे वजूद का हिस्सा हैं वे
बीता कोई किस्सा हैं वे
इतिहास के पन्ने सा
पर करीब है अपने सा
ना वो जकड़ते हैं
ना ही साथ छोड़ते हैं
ख्रामोश तवारीख़ से
कभी किसी सीख से
चंदन के भुजंग से कभी
तो रेशमी सतरंग कभी
नर्म गर्म से मख्रमली और शीतल
विस्मयकारी इनके अंतस्तल
कभी गुदगदाते
कभी प्यार से सहलाते
ये यादों के दरख़्त
साथी से होते हैं
ऐसी ही इनकी छांव भी होती हैं
भूल जाओ कभी तो झकझोरती हैं
ज्ञान चक्षु भी खोलतें हैं
दिल को टटोलते हैं
मुझको तो ये यादों के दरख़्त
किताबों से लगतें हैं
अथाह अनंत का राज़ छुपाये
ख्रामोश खड़े ये मुझको पढ़ते हैं
©®मधुमिता
बिंदिया मेेरी चमके चमचम,
ख़ामोश सन्नाटे के पीछे
तूफ़ान का कोलाहल,
स्थिर नज़रों के भीतर
कल-कल छल-छल l
मूक तस्वीर मे छुपा
सदियों का दर्द हैl
आज उसका रक्षक
हर एक मर्द है
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
नारा आज लगाओl
जब वो अपना हक़ मांग रही थी,
जीवन मे रंग रचने को,
तुम संग डग भरने को,
तब क्यों बुत बन मूक बैठे थे?
क्या तब तुम इंसां नही थे!!!!
©®मधुमिता