Friday 28 October 2022

महफ़िल...

 इस भरी सी महफ़िल मे 


गुलुकार बेहतरीन मिले,


झूठी तारीफ़ें भी मिली, 


बस सच्चा कोई सामईन ना मिला !!


©®मधुमिता

Wednesday 12 October 2022

कुछ दिल से 

 



मैंने दिल पर हाथ रखा जब
हौले से तब दिल ने कहा 
कुछ दिल से-
सुनो  ये आँसू बह जाने दो
जो होना है 
हो जाने दो 
जो जाता है 
उसे जाने दो
कुछ भी नही तुम्हारा है
बस सिवाय तुम्हारे अपने के 
उठो ज़रा 
आईने में झांको
सशक्त हो तुम
सबल हो 
सुघड़ हो 
टूटती हो
बिखरती हो
फिर फिर तुम जीवंत होती हो 
जीवन में भी 
जान सबके ही 
फिर से ही तुम 
फूँक जाती हो 
देखो अब तुम मुस्कुराओ
ज़रा सा सम्भलो
निर्झर बनो
जीवन सरिता सम 
मस्त बहो
निज को संवारो
कुछ रंग सजा लो
काजल लगाओ 
माथे पर अपनी 
बिंदिया सजाओ
ख्रुद को भी तो ज़रा निहारो
देखो इन दो आँखों में
अनदेखा सा तेज है इनमें
जज़्ब करो 
समेटो ख्रुद को 
कुछ गीत कहो 
कविता करो 
शब्दों संग तुम नृत्य करो
अहसासों को पिरो पिरोकर 
निज अस्तित्व का मान रचो
नही दरकार किसी की तुमको 
ये सब आनी जानी है 
उद्घोष करो 
शंखनाद करो 
तुम लक्ष्मी हो
तुम शक्ति हो
तेजस्वी सी
चलो आगे
अब विजयपताका फहराओ
दिल पर अपने हाथ धरो
सुनो तो क्या कहती हो तुम 
कैसे स्वच्छंद उड़ना चाहती हो
पूछो तो अपने दिल से तुम
फिर दिल पर मैंने हाथ रखा जब
धक-धक-धक-धक
उसको गुनगुनाते पाया
मुस्कुराई मैं 
जब दिखे तिमिर में
रौशन से कुछ जुगनू हों जैसे
शब्द मेरे बिखरे पड़े थे
उन सबको सजा आई 
आकाश के उस नवपटल पर
जब किरणों ने ली अंगड़ाई
गीत कई लिख डाले दिल से
भोर भी मंद मंद मुस्काई 
जब दिल ने कहा
मुझसे  
कुछ दिल से 

©®मधुमिता

  

 
 





Thursday 23 June 2022

यादों के दरख़्त 

 


यादों के दरख़्त 

खुशबू से होते हैं

मन को महकाते हैं

और आत्म से 

वे लिपट लिपट जाते हैं

मेरे वजूद का हिस्सा हैं वे

बीता कोई किस्सा हैं वे

इतिहास के पन्ने सा

पर करीब है अपने सा

ना वो जकड़ते हैं

ना ही साथ छोड़ते हैं

ख्रामोश तवारीख़ से

कभी किसी सीख से 

चंदन के भुजंग से कभी

तो रेशमी सतरंग कभी 

नर्म गर्म से मख्रमली और शीतल

विस्मयकारी इनके अंतस्तल

कभी गुदगदाते

कभी प्यार से सहलाते

ये यादों के दरख़्त 

साथी से होते हैं

ऐसी ही इनकी छांव भी होती हैं

भूल जाओ कभी तो झकझोरती हैं 

ज्ञान चक्षु  भी खोलतें हैं 

दिल को टटोलते हैं

मुझको तो ये यादों के दरख़्त 

किताबों से लगतें हैं

अथाह अनंत का राज़ छुपाये

ख्रामोश खड़े ये मुझको पढ़ते हैं



 ©®मधुमिता



Friday 17 June 2022

मेरे माथे की बिंदिया

 बिंदिया मेेरी चमके चमचम,

माथे पर मेरे हर दिन हरदम,
बैठी मेरे भौंहों के बीच,
देखूँ मैं उसको आँखों को भींच,
गर्मी, सरदी और बरसात, 
है मेरे माथे का साज,
सखी सी घूमे वो साथ,
सुबह, दुपहर, दिन और रात,
आज फिसलकर गिर गई वो,
सिमटकर कहीं छिप गई वो,
हर कोने में दी आवाज़,
ढूंढ़ा हर अलमारी, 
और हर दराज, 
याद आई फिर रात की बात, 
रूठा था उससे कल चाँद,
छिप गया था कहीं,
अंधियारे की लेेकर ओट,  
पर रात को तो आसमां सजाना था,
अंधेरे को भी चमकाना था,
प्रेम- प्यार को महकाना था,
बिंदिया तो मेरी थी सजी यहीं,
चमचम चमचम दमक रही,
घने स्याह को रौशन करती,
पूनम के चाँद सी चमकती,
मुस्कुरा रही थी दूर आसमान पर
क्योंकि...
मेरे माथे की बिंदिया उधार ले ली 
आज श्याम रात ने...

 ©®मधुमिता

Wednesday 26 January 2022

इंसां 

 ख़ामोश सन्नाटे के पीछे 

तूफ़ान का कोलाहल, 

स्थिर नज़रों के भीतर 

कल-कल छल-छल l 

मूक तस्वीर मे छुपा 

सदियों का दर्द हैl 

आज उसका रक्षक 

हर एक मर्द है 

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ 

नारा आज लगाओl 

जब वो अपना हक़ मांग रही थी, 

जीवन मे रंग रचने को, 

तुम संग डग भरने को, 

तब क्यों बुत बन मूक बैठे थे? 

क्या तब तुम इंसां नही थे!!!! 


 ©®मधुमिता