Wednesday 29 November 2017

दुनिया का बाज़ार 





सुनहरी धूप और दुनिया का बाज़ार ,
सुनहरे जामो में कंक्रीट के अंबार,
कुछ घर और कुछ मकान,
कुछ एक सपनों की दुकान,
रिश्तों की ढेरीयाँ हैं,
मृषा की फेरीयाँ हैं,
कुछ सुख ,
अनगिनत दुःख,
कुछ नाते बिखरे से,
कुछ सम्बन्ध उखड़े से,
थोड़ी भीड़ है और थोड़ी तन्हाई,
मुहब्बत भी है देखो और है रुसवाई,
कुछ कहानियाँ हैं बनती हुईं
और कई बिगड़ती हुईं,
मुस्कुराते पल हैं,
नफरत भरे दिल भी हैं,
कटु सत्य भी,
मीठे मिथ्य भी,
रोशनी का यहाँ परदा है,
छुपा सा, कुछ अलहदा है,
आँख खोल, बिन लो और कर लो व्यापार,
सुनहरी धूप में सजा है दुनिया का बाज़ार।।

©®मधुमिता

 

Wednesday 15 November 2017

मुहब्बत का सलीका 



सब कुछ भूलना ही शायद 
तुझे पाने का बेहतरीन तरीका है।

महसूस करने को तुझे
बस जी भर कर रो लेना है।

तेरी खुशबू है हवाओं में
इन हवाओं को बस थामना है।

तू यहीं है आसपास मेरे
तेरे अक्स को सीने में छिपा लेना है।

बार-हा लोग पूछे गर
तेरा नाम ज़ुबाँ पर ना लाना है।

ग़ैर मौजूदगी मे तेरी 
यादों से तेरे लिपट जाना है।

खुद को यूं खोकर भी
यादों मे तेरे बसना है।  

मै को मिटाकर
तुझ मे ही सिमटना है।
मुहब्बत से आगे निकल जाना ही शायद
मुहब्बत निभाने का सलीका है।


 ©®मधुमिता

Sunday 12 November 2017

निस्तब्ध


बेजान सी,
अंजान सी,
सुधबुध खोई,
ना अपना, ना पराया कोई,
अदृश्य सी शांति है,
जीवन की भ्रांति है,
ना संचार,ना चाल,
थम गया मानो समय और काल,
अधखुली पलकों से झांकते कुछ पुराने दिन,
बंजर, सूखे से, खुशियों बिन,
दरस की प्यासी उस अनंत की,
सांसें डोर खींचती अंत की,
कुछ ढूंढ़ती,
कुछ खोजती,
आकुल
और व्याकुल,
कुछ छोड़ती सी,
सब कु खोती सी,
नि:शब्द,
निश्चेष्ट और निस्तब्ध।।


©®मधुमिता