Friday 25 January 2019

रात..


फिर एक तारा टूटा

ऊपर आसमान से,

खो जाने को कहीं

सर्द बर्फ़ीले सन्नाटे में,

टूटकर एक पत्ता गिरा 

धरती के विराट सीने पर,

जीवन रूपी वट वृक्ष से,

जो खड़ा एक चट्टान सा,

अचल फिर भी चलायमान,

समय के अथाह सागर में

घर बनाकर,

दूर दूर तक 

जड़ें फैलाकर ,

ख़ुद में ही भू को समेटे,

हर रंग को ,

हर रूप को ,

आयुष्य,

अवसान,

विरह और मिलन को,

उस पत्ते को उठा,

हरियाली से लिपटकर,

रोशन ख़ुद को करते हुये,

टूटे उस तारे को अपनाकर, 

दिनभर की अग्नि को सोख, 

उस सर्द अंधेरी रात को,

उष्णता की चादर ओढ़ाकर।।

©®मधुमिता

Monday 21 January 2019

बसंत


बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा

प्रस्फुटित 

बिल्कुल इस वृक्ष के पत्तों की तरह

लहलहाता 

प्रेम की तरह उर्वर 

जो हर फूल 

हर पत्ते में उपजती है

चमकती है

निखरती है

आलिंगनबद्ध कर लेती है  

नाम लिख जाती है अपना 

बसंत के हर पोर में 

नाम मेरा 

और तुम्हारा 

फिर झूल जाती है 

लताओं से

कभी चढ़ती हुई

बेल को छूती 

आसमान तक बढ़ जाती है 

और फूल बन

बिखर जाती है कई रंगों में

समा जाती है मेरे नस नस में

बहती हुई बसंत संग 

चाहती है वो देखना

बसंत को मुझमें बसते हुये 

चिरयौवन सा रूप धर

यह बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा

©®मधुमिता

Thursday 17 January 2019

रात का आलम...


गुम सी हो चली हूँ

इस रात के आग़ोश में

चुप हम और चुप तुम

दोनों ख़ामोश से


शब कुछ ज़्यादा सुरमई है

दो नैनों की रोशनी बिना

आँखों के काले काजल से 

रात ने ख़ुद को है छीना


अंधेरे ने चादर फैलाई

चुपके से आ मुझको घेरा 

मैं ढूंढ़ रही थी तब सन्नाटे में

अपना सा दामन तेरा 


ये रात मेरी

ये अंधियारा मेरा

ढूंढ़ती हूँ फिर भी हर पल

वो मुस्कुराता साया तेरा


थम जाऊँगी तेरे पलकों पर आ

जी जाऊँगी एक पूरा जनम

गुम होने को फिर एक बार

चुराकर इस रात का आलम 


©®मधुमिता

Friday 11 January 2019

इंतज़ार तुम्हारा



देख रही थी मैं

खुली खिड़की से,

दूर चमचमाते 

उस चंदा को,

सलेटी रात के

आँचल में टँके

पुखराज सा,

इस दुनिया को 

सम्मोहित करता,

और ठीक उसी के नीचे

इस धरा पर वह पलाश, 

सुर्ख़ लाल से लदी फदी

उसकी वह डाली,

रक्तरंजित सी,

आभामय,

रोशनी में नहाई,

मुस्कुराई

जब छू गयी हवा

त्रिपर्णा को

और फिर चुपके से

आ गयी खिड़की पर मेरे,

घुस आई वो अंदर,

छुआ उसे मैने,

रोका भी,

पर वो चली धीमे धीमे

धीमी धीमी आग की ओर,

उन जलती बुझती शाखों पर,

मुस्कुराती डोलने लगी वो,

ठंडी पड़ती शोलों को

भरने लगी गर्माहट से,

जो माँग लाई थी चंदा से,

कुछ लाली पलाश की भी

उसने उड़ा दी,

कुछ खुशबू फ़िज़ा की 

घोल गयी वो,

कुछ तिलस्म वो कर गयी,

ना जाने कैसे

उन सुलगती शाखों पर,

सपनों के कुछ नाव तैराकर

तुमसे मुझको जोड़ गयी,

चंदा ने बांधा था जो पुल तुम तक

उस तक मुझको ले चली वो,

हाँ ले चली वो तुम तक, 

जब समय की राख पर 

बैठकर कर रही थी 

मैं इंतज़ार तुम्हारा।


©®मधुमिता

Tuesday 8 January 2019

गीत कई...



चलो तुम्हें वो सारे गीत सुनाऊँ
जो लिखें थे मैंने 
जब  तुम गुम थीं 
स्वप्न लोक में
ख़्र्वाबों के रंगीन बिछौने पर 
मेरे बाँहों के सिरहाने पर
संभाली हुई
सुरक्षित सी
और लिख डाले मैंने गीत कई
जब तक सूरज चढ़ आया था
सहलाने लगा था चेहरे को तुम्हारे

मैं मेघ बन ऊपर उड़ आया
आसमां से सितारे चुरा लाया
उस गर्वित निष्ठुर पर्वत को 
हथेली पर उठा लाया
अर्पण तुमको करने को
श्रृंगार तुम्हारा करने को
देख तुम्हारी आँखों में
जुगनुओं की रोशनी तले
फिर लिख डाले मैंने गीत कई
हर जीत का हर पल बल पाकर 
इन दो नयनों में तुम्हारे

रंग डाला उस आसमान को
तुम्हारे अधरों की लाली से
जो चुरा लाया था तब
जब मुस्कान बिखेर रही थीं तुम
उस रंग-बिरंगी तितली सी 
सुन्दर एक परी सी
पंखों को अपने फैलाये
इन्द्रधनुषी छटा बिखेर रही थीं जब तुम
तब लिख डाले मैंने गीत कई
गुनगुनाता अल्हड़ भँवरे सा 
कई रस तुमसे ही चुराकर तुम्हारे

चलो ना हम दो उड़ चलें
एक तुम और एक मै
सात समंदर तेरह नदियों के पार कहीं
बादलों का एक द्वीप बसायें
एक दूजे में खो जायें
ज्यों मेरे शब्द और स्वर
एक दूजे के पूरक बन जायें
फिर इन दो आँखों में ख़ुद को खोकर 
लिख डालूँ मैं गीत कई
सुन्दर कोमल नाज़ुक से
सपनों के रंगों से तुम्हारे 

©®मधुमिता

Tuesday 1 January 2019

नया साल


नया साल
नये लोग
नयी राहें
कुछ चाहे 
कुछ अनचाहे
साथ चल पड़ी
कुछ पुरानी यादें
कुछ अधूरे वादे
कई टूटे सपने
कुछ ताकतीं हकीकतें
जीवन की भूलभुलैया
आँकी-बाँकी कितनी गलियाँ 
आकांक्षाओं की बावड़ियाँ
इच्छाओं की नाज़ुक पोटलियाँ
कुछ धूसर से भय 
सतरंगी कई आशायें
बिखरे हुये रंग कई
और एक बेरंग कैनवास नया
जो तैयार खड़ा है रंग जाने को
एक नयी तस्वीर बनाने को
नयी कहानी सुनाने को
नया इतिहास बनाने को

©®मधुमिता
नव वर्ष

नव वर्ष है
नूतन किरणें

पुष्प भी सब नये नये

नव किसलय दल

नूतन कलियाँ

ओस की बूँद भी नयी नयी

सब कुछ अब नया नया सा हो

पुरातन की छाँव तले

नव निर्माण हो

नयी उड़ान हो 

कुछ परवान नये

कुछ परवाज़ नये

नूतन गान हो

नव जीवन की तान हो

नूतन गाथायें 

नव सृजन करती कईं कवितायें

प्रेम हो सम्मान हो

हर जीव का मान हो

ये नया वक्त मुबारक हो 

ये नव वर्ष मुबारक हो 

©®मधुमिता