Sunday 18 March 2018

कहो तो तुम क्या हो!



रेशम सा सहला जाते हो,
ठंडी हवा सा सिहरा जाते हो,
इत्र की महक हो!
हो शहद की मिठास!
कुछ तीखे से,
कुछ नमकीन,
बारिश की बूंदों सा
भिगो जाते हो,
मनचले बादल सा
फिर फिर उड़ आते हो,
खुली आँखों से देखा ख़्वाब हो,
सवाल कभी, तो कभी जवाब हो,
उलझन हो,
सुकून हो,
साँस हो,
आस हो,
हर पल रहते आसपास हो!
कौन हो?
क्या हो?
एक अहसास हो महज़,
या कोई सच हो?
कहो तो तुम क्या हो!

©®मधुमिता 

Saturday 3 March 2018

सूरज....



अलसाई नज़रों से जब देखा किये हम
तो एक अलसाई सी मुस्कान लिये
शरारती सी सुबह ने हमे सलाम किया,
जवाब में मुस्कुराये ही थे 
कि बादलों की ओट से झाँकते दिखे ये ,
हौले से हमें अपनी रोशनी में समेटने लगे,
उनकी सुनहरी किरणें थिरकने लगी
जिस्म पर हमारी, मचलने लगी रोम रोम में ..
कसमसा कर हमने रज़ाई और कस ली,
बस अधखुली सी नज़रों से जब देखा उन्हे,
तो बड़ी रौब में इतरा रहे थे वो,
कभी सामने आ जाते, 
कभी बादलों में गुम हो जाते,
खेल रहे थे हम संग, आँखमिचौली,
करते हुये कई अठखेली,
अम्मा! क्यों नही कहती आप इनसे कुछ!
कहिये कहीं और जाकर इतरायें,
किसी और पर अपना जादू चलायें,
बदमाशी पर जो हम उतर आयें 
तो हथेलियों में बंदकर 
उतार लायेंगे आसमान से
और कैद कर लेंगे अपने कमरे के फानूस में,
फिर हमसे मत कहियेगा छोड़ने को
इस मग़रूर और आशिकाना 
बदमाश से सूरज को! 
  
©®मधुमिता