Wednesday 31 October 2018

ना था वो ही....


चाँद था,  सितारे थे,
और थी शमा,
बस एक परवाना ही ना था।

चूड़ियाँ थीं, बिंदी भी 
और मेहंदी उसके नाम की,
बस दिले-आशना ही ना था ।

बादलों पर थिरक रही थी, 
रौशन चाँदनी ,
फिर भी सब अन्जाना सा था।

हवा छेड़-छेड़ जाती थी,
धुन इश्किया सुनाती थी,
पर वो एक दीवाना ना था।

रात ग़ज़ल कह रही थी,
ढेरों फ़साने बुन रही थी,  
पर तेरा मेरा अफ़साना ना था। 

भरी सी दुनिया थी,
रंगीन सा जहाँ भी था,
पर तेरा बनाया आशियाना ना था।

इश्क था,  मुहब्बत थी
और थी आशिकी, 
बस तेरे प्यार का नज़राना ना था।

 ©®मधुमिता

Monday 29 October 2018

इंतज़ार...




आज रात हल्की सी ठंडी बयार 
छूकर जब निकली, 
तो सुने मैने शरद के पदचाप,
कोमल से पदचाप,
बिल्कुल उस पायल के आवाज़ सी
जो तुमने पहनाई थी मुझे, 
मधुर और कोमल,
छम-छम करती, 
ऊपर मोती सा गोल चाँद 
चमक रहा था ,
झाँक रहा था नीचे,
देख रहा था,
जब हवा, मेरे गालों को सहला
उस तक जा पहुंची थी,
सप्तपर्णी की सुगंध से लदी फदी,
हाथ बढ़ा, कोशिश की चाँद को छूने की,
उसी में तुम्हारा अक्स जो देखती हूँ,
सड़क पार जो यायावरों ने आग जलाई थी,
वह भी हल्की हो चली थी,
पर सुलग रही थी धीमे- धीमे, 
हमारे सुलगते अरमाँ हों जैसे, 
हर रोशनी,
चाँद, सितारे,
हर महक ,
हर आहट ,
तुम तलक ले जाती है मुझे,
हवा के झोंके पर सवार,
मन मेरा उड़ चलता है,
दूर, बहुत दूर ,
जहाँ एक नये क्षितिज पर 
तुम खड़े हो 
और साथ खड़ा है इंतज़ार,
इंतज़ार, जिसे चाह है
बस दो दिलों की नज़दीकी की,
तुम्हारे मेरे हाथों को थामने की,  
हमारे मिलन की ! 

©®मधुमिता

Thursday 25 October 2018

मुट्ठी भर आसमाँ ...





मुट्ठी भर आसमाँ लेकर 

निकली थी मै,

सारा जहाँ मै चुन लाई,

गुलाबी से कुछ ख़्वाब 

सजाना चाहती थी मै,

इन आँखों में देखो, 

सारा इंद्रधनुष उतार लाई,

कतरा एक ढूढ़ने चली थी, 

इस छोटी सी अंजुरी में मै 

प्रेम का सागर भर लाई ,

खुरदरे टाट से अंधेरे में

सपने कई सजा आई, 

क्षणभंगुर से इस जीवन में,

ज़िन्दगी जन्मों की जी आई,

मरुस्थल से इस दिल में

अनंत प्रेम समेट लाई,

मुट्ठी भर आसमाँ लेकर 

निकली थी मै,

सारा जहाँ मै चुन लाई ..।।


©®मधुमिता



Wednesday 24 October 2018

रब...


मेरा मन ही तेरा मंदिर है
मुझे घर-दर से तेरे क्या लेना। 
सब कुछ तो तेरा दिया हुआ है
फिर क्या खोना, और क्या पाना।
खुशियाँ भी तेरी, और ग़म भी
ज़ार-ज़ार फिर क्या रोना।
तू आदि है, तू ही अनंत
क्या मुश्किल है तुझको खोज पाना।
सैय्याद चहुँ ओर फिर रहे
ध्येय उनका, हर नाम को तेरे किसी तरह बस हर लेना।
या रब ! मै ख़ामोश हूँ देख, इंतज़ार में तेरे,
चुपके से आकर कभी तू, मेरे मन मंदिर में समा जाना।।


©®मधुमिता
चाँद....



चाँद आज शरमाया सा,
लजाया सा है कुछ,
बादलों के पीछे
लुकता- छिपता,
शायद मेरी नज़रों से
नज़र मिली जब,
तो झेंप गया वो ,
बहुत छेड़ा है मुझको इसने,
खिड़की से मेरी झाँक-झाँक कर,
रोज़-रोज़ ड्योढ़ी पर मेरे, 
बार-बार फेरी लगाकर,
आज काबू आया है ये,
क्यों भला अब छोड़ूं इसे,
खूब इसको मै सताऊँगी
गिन-गिन बदले चुकाऊँगी,
एकटक जो लगी ताकने
मनचली सी बनकर मै,
झट उड़ गया तब दूर गगन में,
देखो कैसे छिप गया आवारा, 
अब, चाँदनी के आग़ोश मे ।।

©®मधुमिता

Monday 22 October 2018

तब याद आ जाता है प्रेम ! 




शायद भूल जाती हूँ 

कभी कभी, प्रेम को,

फिर दिख जाता है 

दूधिया सा चाँद जब, 

चाँदनी संग लिपटा हुआ

तब याद आ जाता है प्रेम;

जब दिखती है

कंगूरे से झूलती 

कोमल सी लता,

पत्थर के स्तंभ से 

लिपटने को मचलती सी,

तब याद आ जाता है प्रेम;

रात में मदमस्त पवन,

मधुमालती के स्पर्श से

सुवासित हो,जब 

हिचकोले खाता है

और श्वेत सी मधुमालती

जब, लाज से गुलाबी हो

प्रेममयी हो जाती है,

तब याद आ जाता है प्रेम;

रात के अंधियारे में,

पुरानी उस किताब के 

जिल्द के भीतर छुपाई हुई

उन मटमैले ख़तों के 

धूमिल होते शब्दों को 

जब देखती हूँ,

फिर-फिर उनको जब मै, 

बार बार पढ़ती हूँ ,

तब याद आ जाता है प्रेम ! 

©®मधुमिता

Saturday 20 October 2018

शोर...


शोर बहुत है 
कुछ देर ख़ामोशी को सुन लें
बदहवास सी सोच
कल्पनायें भागती दौड़ती
यादें उमड़ती घुमड़ती 
अनर्गल से शब्द कई
बेलगाम सी आवाज़ें
नर्तन है किरणों का
छाया भी बकबकाती है
हवा कभी मचल उठती है
कोलाहल मचाती है 
भँवरा बौराया है
तितली खुसपुसाती है  
कानाफूसी का खेल है 
अनंत नादों का मेल है 
चलो चले निर्जन में
मौन से नीरव मे
 शोर बहुत है 
कुछ देर ख़ामोशी को सुन लें

©®मधुमिता

Tuesday 9 October 2018

तेरी लगे हर चीज़ यहाँ ...


सुबह तेरी
शामें तेरी,
रातें तेरी,
ये सहर भी,
सुर भी तू,
ताल भी तू,
तू बंदिशे,
तू रागिनियाँ,
स्थाई कभी,
अस्थाई कभी,
आरोह भी, 
अवरोह भी,
मध्यम,
द्रुत,
सब लय
विलय, 
कविता में तू 
संगीत में तू,
मेरा चैन भी
और सुकून भी,
धरती तेरी
आसमां तेरा
तू आशिकी
मेरी दीवानगी,
ये दिल तेरा,
ये जहाँ तेरा,
ख़्वाबों की मूरत है तू
ख़्वाहिशों का समन्दर तू,
हर घड़ी तेरी,
हर पल तेरा,
तेरी लगे, हर चीज़ यहाँ
मानों हो, ये कायनात तेरी।।


©®मधुमिता



 

Thursday 4 October 2018




रंग हैं 
पर रंगहीन से
शब्द भी हैं 
पर बेज़ुबान हैं
दुर्दान्त सी बेबसी है
चीखते हुई मायूसी भी
हर तरफ कर्णभेदी शोर है 
मृत्यु सी ख़ामोशी भी
कहते हैं सब अपने हैं मेरे
क्यों हर कोई पर अनजाना सा है
ख़ौफ़ कई हैं इर्द-गिर्द 
जो हरदम मुझे डराते हैं
अनदेखे कंकाल हैं कई
वीभत्स नाच दिखाते हैं
नासमझ सी एक समझ है
समझती हूँ लेकिन शायद सब
यादें भी हैं छुपी कहीं
जो हाथ नही हैं आतीं अब 
दिन और रात अब एक से मेरे
समय असमय सब एक समान
नींद अब कोसों दूर है मुझसे
जागना भी अब आदत है मेरी
अनसुलझे सवालों के अब 
जवाब बस ढूढ़ती हूँ
अजनबी चेहरों में हरपल 
अपनों को तलाशती हूँ
हर कोई दुश्मन लगता है
हर चेहरा पराया लगता है
कोई कहता है मै बेटा हूँ
कोई खुद को कहती है बेटी
कोई मगर ये तो बताओ 
कि कौन हूँ मै
हाँ कौन हूँ मै
किस देस से मै आई हूँ
नाम मेरा भी मुझे बताओ
अपनी हूँ कोई तुम्हारी
या कोई पराई हूँ 

©®मधुमिता

#alzheimer's 


Wednesday 3 October 2018

भूलना....


छोड़ गये हो तुम मुझे,
अपने दिल के उस छोर पर,
जो गाँठ बाँधे बैठा है
मेरे दिल के हर धड़कन से
जिनमें तुम बसते हो,
और बसती हैं यादें तुम्हारी,
खोलती हूँ उन गाँठों को जब,
तो और कस जाती हैं 
नामालूम क्यों!
उड़ाती हूँ यादोँ को हर शाम,
तो वो और रंग बिखेर जातीं हैं,
ना तुम देखते हो
और ना ही दिखते हो,
दिशाशून्य सी चल रही हूँ
धुमिल पड़ती स्मृति पटल पर,
गर तुम यूँ मुझे 
भुला दोगे  धीरे  धीरे ,
तो  मै  भी  तुम्हे 
हौले-हौले से,
भूलने की कोशिश 
तो कर  ही सकती  हूँ !!

©®मधुमिता

Tuesday 2 October 2018

प्रेम कहाँ छुप पाता है...


ठंडी बयार सी
दहकती अंगार सी
सूरज सा चरम
चान्दनी सी रेशम 
धूप छाँव के से खेल में
अद्भुत से बेमेल में
प्रेम कहाँ छुप पाता है
नयी कविता लिख जाता है 
नयनों में चहकते काजल सी 
पैरों में खनकती पायल सी
नयी बोली दे जाता है
शब्द नये सजाता है 
बोले अनबोले के फेर में
ख़ामोशी के हेर में
सब कुछ बदला सा लगता है
जब जहां नया सा लगता है
जब दिल बल्लियों उछलता है
अनुराग आँखों से छलकता है
तब प्रेम कहाँ छुप पाता है
नयी कविता लिख जाता है 

©®मधुमिता