ना था वो ही....
और थी शमा,
बस एक परवाना ही ना था।
चूड़ियाँ थीं, बिंदी भी
और मेहंदी उसके नाम की,
बस दिले-आशना ही ना था ।
बादलों पर थिरक रही थी,
रौशन चाँदनी ,
फिर भी सब अन्जाना सा था।
हवा छेड़-छेड़ जाती थी,
धुन इश्किया सुनाती थी,
पर वो एक दीवाना ना था।
रात ग़ज़ल कह रही थी,
ढेरों फ़साने बुन रही थी,
पर तेरा मेरा अफ़साना ना था।
भरी सी दुनिया थी,
रंगीन सा जहाँ भी था,
पर तेरा बनाया आशियाना ना था।
इश्क था, मुहब्बत थी
और थी आशिकी,
बस तेरे प्यार का नज़राना ना था।
©®मधुमिता