Tuesday 13 February 2018

बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को..



कभी रोते हो,
कभी रुलाते हो,
मुस्कान मिटा आते हो,
ज़ोर खूब आजमाते हो,
बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!


मरते हो,
मार जाते हो,
लुट जाते हो,
लूट आते हो,
बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!

तेरा मेरा करते हो,
अपना पराया जपते हो, 
ज़मीं दर ज़मीं बाँट आते हो,
राम औ' रहीम को अलग बताते हो,
बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!

कभी ख़ौफ़ हो,कहीं मौत हो,
संत्रास कहीँ, कभी संताप हो,
चोट हो, आघात हो,
हे मनु! क्यों इतने घृणित हो तुम?
अंत मे बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!

©®मधुमिता 

Wednesday 7 February 2018

मुहब्बत हूँ 



कहानी हूँ इक मुहब्बत भरी,
पन्ना दर पन्ना हूँ आशिकी,
हर हर्फ़ से झाँकती हूँ,
हर एक फ़िक़रे
हर जुमले में हूँ शामिल,
अहसासों के रंगों से भरी,
नज़ाकत से लिखी गयी,
प्यार भरा अफ़साना मैं,
क़सीदा कहो, 
या कहो फ़साना,
नज़्म कहो
या गज़ल कहो,
हर लफ़्ज़ लफ़्ज
बस इश्क हूँ,
ना समझ पाया कोई अबतक,
कभी ना कोई पढ़ पाया,
सुनो! बड़े कायदे पढ़े हैं तुमने,
क्या मुझ तक भी तुम आओगे?
सुना है तुम मुहब्बत को पढ़ते हो!
क्या मुझे तुम पढ़ पाओगे?

©®मधुमिता