Saturday 25 February 2017

वादा 




अंधेरे जब कभी तुमको डराने लगे,
पथरीली राहों  पर कदम डगमगाने लगे,
ज़िन्दगी रेत सी फिसलती जाये,
वक्त भी जब हाथ ना आये,
बेदर्द ठोकर की वजह से जब तुम गिरने लगो,
ज़रा ज़रा सा तुम टूटने लगो,
चलते-चलते जब थकने लगो, 
थक कर गर तुम बिखरने लगो,
तब मेरी बाहें थाम लेंगी तुमको,
कभी भी ना गिरने देंगीं तुमको।


हर मोह और लालच को छोड़, 
हर बेमानी रिश्ते को तोड़, 
हर कदम तुम्हारे संग ही लूँगी , 
हाथ थामे, तुम संग चलूँगी, 
ना आगे, ना तुम्हारे पीछे,
तुममें ही ख़ुद को समेटे,
चल पड़ूँगी तुम संग,
ढलकर तुम्हारे रंग,
हरपल इस जीवन में, 
पाओगे तुम मुझे संग मे।


धड़कती सुबह के उजाले में, 
स्याह रातों के सन्नाटे में, 
रहूँगी बस तुम्हारे साथ,
हरपल, हर दिन और रात,
ये जीवन नही आसान, 
पर तुम हिम्मत ना हारना मेरी जान,
मुस्कुराकर सब झेल जायेंगे, 
हम और तुम जब मिल जायेंगे, 
देखो ये मेरा वादा है तुम से,
हारने दूँगी ना तुम्हे किसी से।


हाँ है मेरी बाहों में भी गज़ब का दम,
मै नही हूँ किसी से कम,
हर ठोकर पर थाम लूँगी तुमको, 
फिर से खड़ा करूँगी तुमको,
तुम से है मेरा मान,
तुम गौरव, मेरा अभिमान, 
हूँ थोड़ी पागल सी,
पर पगली तो ये ज़िन्दगी भी,
देखो ना कितने खेल खिलाये,
कितना भी भागो, ये हाथ ना आये।


जीवन के इस भाग दौड़ में, 
गली-गली और मोड़-मोड़ पे, 
साया भी मेरा साथ चलेगा तुम्हारे, 
कोई ना होगा दरमियान हमारे, 
तुम बस खुशी मेरी,
साथ निभाना है प्रतिज्ञा मेरी,
मुझे दरकार है तुम्हारी,
तुम्हे दरकार साथ की मेरी,
वादा है मेरा, साथ रहूँगी तुम्हारे हरदम,
मिलाकर हर कदम से कदम।।

©मधुमिता

Wednesday 22 February 2017

बूँदें 




कुछ नटखट सी,
चुलबुली सी,
धरती के सीने पर थिरकती
बारिश की बूँदें,
ना जाने कितने राज़ छुपाये,
कितने रहस्य ख़ुद में समेटे
एक पहेली, 
ख़ामोश सी हलचल ।


धीमे-धीमे, हौले-हौले,
कभी टूटते,कभी फूटते,
सुखी धरती की छाती पर विसर्जित,
विसारित,
धंसतीं, 
धसकतीं, 
धीमे पड़ती,
हर अणु न्यौछावरती ।


कभी रिसती,
कभी टपकती,
एक दूजे के पीछे चलती सी,
शांति से मचलती,
जलतरंग की तर्ज़ पर,
थामे बादलों के अल्फ़ाज़ों की डोरी,
धरती अम्बर को पुचकारती, 
सीनों की आग बुझा जातीं ।


असंख्य जीवन में प्राण फूंकतीं,  
धरती को सारगर्भित करती,
अर्थपूर्ण, 
भावपूर्ण, 
अनोखी रागिनी,
मधुरम काव्य, 
आर्द्रता से छुती,  
शीतल सी ठंडक पहुँचाती ।


बूँदों का निर्मल तराना,
स्वर माधुर्य से से ओत प्रोत गाना,
श्यामल से नीरद दल, 
चुपके से झाँकता सूरज सोनल,
हवा के गीले आँचल में 
छुपे हुए शुभ्र मोती से,
खुसफुसाते,दे जातें कई इंद्रधनुषी गीत,
सजा जाते हैं इंद्रधनुषी स्वप्न अनगिनत ।।

©मधुमिता

Monday 20 February 2017

तुम्हारे संग 



"तो क्या चलोगी तुम मेरे संग"?
तुमने पूछा मुझसे,
कुछ इतने करीब से
कि लजा गयी थी मै!

तुम कल्पनाओं में जीते हो,
स्वप्न लोक में विचरते हो,
प्रेम - प्यार में गोते खाते,
रंगीन से अनुराग जताते।

धीमे से हर राग, भाव चेहरे पर थिरकते हैं, 
आवेग, जोश मचलते है,
थोड़ी सी लालसा
और कुछ अभिलाषा ।

उन्मुक्तता, 
मादकता,
प्रेम वासना,
अनंत तृष्णा ।

तुम और हम स्वप्न द्रष्टा हैं, 
हम सपनें सजाते हैं, 
जग हमारा कपोल कल्पित, 
प्राकृतवादी, प्रेमप्रासंगिक।

हम कवि हैं, 
लेखक हैं 
एक प्रेम कथा कल्पित के, 
अनूठे एक प्रेम गीत के।

गुलाबी सी चादर डारे,
मन में असंख्य तरंगे उतारे,
कुछ तामसी,
कुछ उत्साही।

चल पड़ी मै तुम्हारे साथ,
एक दूसरे का थामे हाथ,
तुम और हम,
आकाशीय, वायव्य नर्तक।

जलतरंग सी लय मे रत,
मधुर पर हृदय गति सी द्रुत,
उन्मत्त, उन्मादपूर्ण,
उल्लासमय, हर्ष से परिपूर्ण ।

तुम और हम प्रेम में विलीन, 
प्रेम से परिपूर्ण,
स्वतंत्र, असीम, अपरिमित,
सदैव प्रेममय, एकीकृत,
रंग बिरंगी भावनायें, सार्वकालिक,
दो अनंत प्रेमी चिरकालिक ।।

©मधुमिता

Thursday 16 February 2017

नींद


आँखें मेरी खुली हुई,
पलकों की झालर के पीछे से
एकटक झाँकती हुई,
स्याह रात का काजल लगाये,
रंग बिरंगे सपनों की सौगात सजाये, 
तुम्हारे इंतज़ार मे आँचल बिछाये,
तुमको ही तुमसे चुराये
अपने  दिल में बंदकर,
बैठी हूँ सबसे छुपकर, 
तुम्हारे पैरों की आहट को सुनने,
एक एक पल, हर क्षण, गिनते गिनते,
बुत सी बन गयी मैं, 
मानों पथराई सी!
नींद भी रफ़ूचक्कर है,
बैठी होगी कहीं छिपकर,
मेरी आँखों से ओझल
एक तुम भी 
और दूजी नींद,
इधर उधर विचरण करते,
सपनों का मेरे मर्दन करते
हुये, दोनों हरजाई,
कभी हाथ ना आते,
कोसों मुझसे दूर भागते,
काश तुम मेरी आँखों में 
नींद बनकर बस जाते!
बंद आँखों में मेरी
नींद बन, हमेशा
हमेशा को समा जाते।।

©मधुमिता
शोख़ियों में घुली शबनम...




शोख़ियों में घुली शबनम,
थोड़ी मासूम, थोड़ी नर्म,
कभी चहकती,
कभी बहकती, 
याद जो आये बार बार,
बस प्यार, हाँ प्यार! 
फूलों सी कमसिन जवानी लिये,
शराब की सी रवानी लिये,
हर कोने और ज़र्रे में छुपा प्यार हमारा,
अरमानों का चमचमाता सितारा।


दिन बचपने के,
दिल मनचले से,
तेरे आग़ोश में पिघलने की चाह,
कभी मुस्कान शर्मिली, कभी एक आह,
बाग़ों में, राहों में,  
हर कूचे और गलियारों में, 
चुपके से झाँकता हमारा प्यार, 
गलबहियों के डाले हार।


यादों की शहनाई की धुन,
तू भी तो ज़रा सुन,
तेरे बग़ैर ये सुनापन, ये तन्हाई,
हर कदम तेरी यादें ही चली आईं हैं, 
बन बैठी इक ख़ुमारी,
यादें तेरी प्यारी, 
सुध बुध सब हारी,
प्यार पर सब वारी ,
जैसे शोख़ियों में घुली शबनम,
थोड़ी मासूम, थोड़ी नर्म।।

©मधुमिता

Monday 13 February 2017

मेरे होंठों का लरजना तुम सुन लो. ..



मेरे होंठों का लरजना तुम सुन लो, 
इस बेताब दिल का धड़कना तुम सुन लो।

धधकती साँसों को महसूस तुम कर लो,
मचलते जज़्बातो को ज़रा तुम थाम लो।

बेरंग मंज़र को मुहब्बत से रंगीन तुम कर दो,
इश्क की सुर्ख़ी मेरे दिल में तुम भर दो।

बेलगाम हसरतों को अपनी आग़ोश में तुम ले लो,  
मदहोश हूँ मैं, अपने पहलु में तुम छुपा लो।

मेरे पलकों से चंद मोती तुम चुन लो,
कुछ ख़्वाब संग मेरे तुम बुन लो।

इश्क की बहती हवा को इक नया मोड़ तुम दो,
मुहब्बत की राह पर पैरों के निशां तुम छोड़ दो। 

मौसम ने बिखेरे हैं मुहब्बत के रंग, कुछ रंग तुम चुरा लो,
वीरान सी ज़िन्दगी में मेरी, अपनी आशिकी के रंग तुम फैला दो।

अनकहे लफ़्ज़ों को तुम पढ़ लो,
ख़ामोश से मेरे अल्फ़ाज़ों को तुम सुन लो।

मेरी जुम्बिश ए लब ज़रा तुम देख लो,
इन लबों की थरथराहट का तुम अहसास कर लो।

अनकहे लफ़्ज़ों को तुम पढ़ सको तो पढ़ लो,
ख़ामोश से मेरे अल्फ़ाज़ों को ज़रा तुम सुन लो।

मेरे होंठों का लरजना तुम सुन लो, 
इस बेताब दिल का धड़कना तुम सुन लो।

©मधुमिता

Thursday 9 February 2017

बसंत का गीत



सुनो बसंत को गाते,
गुनगुन, गुनगुन गुनगुनाते।

सर सर चलती बयार,
मीठी सी टंकार,
रंगीन तितलियों के पर काचित, 
चहकती कूकती कोयल उत्साहित।

अमराई में बौरों का मौसम,
सूरज की किरणें कुछ कोमल, कुछ मद्धिम, 
सरसों का पीला आँचल,
शुभ्र आकाश में उङते, उज्जवल,धवल बादल दल।

पंछियों की रागिनी, कलरव में गायन,
नूतन पुष्प मनभावन ,
पोर पोर में रंगों के दर्शन, 
हर कली, फूल, पंछी का आनंदमय नर्तन।

साथ में थिरकता झील का पानी, 
बसंत मानों एक चंचल सी लङकी कोई सुहानी,  
धीरे-धीरे गुनगुनाती कोई गीत,
खोजती अपने सा सुंदर कोई मीत।

कानों में मिसरी सी घोलती, बसंत का गीत
कर दे जो नवजीवन का संचार, जगाये प्रीत,
नवीन ऊर्जा का संचार करती,
उल्लास, जोश और आशा से भरती।

सुनो बसंत को गाते,
गुनगुन, गुनगुन गुनगुनाते।।

©मधुमिता

Thursday 2 February 2017





चाहत...



चाहा मैने तुझे सदा
हर सूरत में, 
बिना वजह,
बेइंतहा, 
फिर भी चाहत मेरी काफी ना हुई
तेरे दिल में जगह पाने को,
जज़्बात कुछ जगाने को,
कुछ सूखे, सर्द दिनों में, 
कुछ नर्म, गर्म रातों में,
फिर भी इश्क मेरा, साकिन।


मुहब्बत मेरी,

तेरे लिए ठहरी हुई
सज़ा ओ सामान,
हमेशा-हमेशा, 
हमेशगी तलक,
स्याह रातें और
सुनहरे दिनों के सफ़र मे, 
कुछ मीठी सी,
कुछ बचकानी सी मुहब्बत,
फिर भी कमबख़्त ज़िद्दी सी। 


मेरी मुहब्बत बहती है 

लगातार, 
गहरे सुर्ख़ जाम की तरह,
तेरे लबों को छूने को बेताब,  
जज़्बों के चश्मे से बहती,
सुर्ख़ लाल के पत्थर सी
चमकती, दमकती,
बस तेरी तव्वजो पाने को,
किसी जादू के होने के इंतज़ार में 
उम्मीद और आस लिए ।


तू क्या मेरे इश्क को बरबाद करेगा,

इश्क मेरा बरबादी के ना काबिल है,
कितनी भी तू कोशिशें करले,
या करे नज़र अंदाज़,  
आशिकी मेरी ज़िन्दा रहेगी,
बाक़ैद हयात,  
ये कल्ब मेरा धड़कता रहेगा,  
रूह मेरी ताकती रहेगी हर पल तेरा रास्ता 
और मासूम सा दिल मेरा एक दिन,
खुशियों से नाच उठेगा, सुरूर से, शादमान ।।

©मधुमिता