Sunday 30 April 2017

भूलना

चलो कुछ सपने साथ देख आयें,
कुछ पल प्यार के जी आयें,
भर लूँ तुमको बाँहों में,
बंद कर लूँ ये पल निगाहों में,
प्रेम यूँ भी अढ़ाई अक्षर का होता हैं,
बह लेने दो उसे इन धमनियों में, रंग लेने दो,
इससे पहले कि यादें ये विलुप्त हो जायें स्मृति के किसी अंधेरे मे,
भूलना भी जानम बहुत लम्बा सा एक अंतराल होता है।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 

Saturday 29 April 2017

आग़ोश...



डूब रहा हूँ मै 
बेहिसाब अंधेरों में,
आकर थाम ले मुझको, 
पनाह  दे दे अपने सीने में,
मयस्सर हो तमाम खुशियाँ तुझे,
जो आग़ोश मे अपनी मुझे ले ले।। 

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 
कैद कर लो मुझे


अकेला हूँ मै इस अनंत गगन मे,
आ जाओ, कैद कर लो मुझे अपनी लहरों में,
समा जाये इक दूजे मे ,
सुनहरा से आलम मे ऐसे,
डूब जाऊँ मै तुम मे पूर्णतः
भर लो मुझे यूँ अपने अंक मे।।

©मधुमिता
#सूक्ष्मकाव्य 

* सूरज और पानी की कहानी

Friday 28 April 2017

इंतज़ार



अथाह नील पर चल, आयेगी एक नैया,
बंद दरवाज़ों को खोल, आयेगा मेरा प्राण खिवैया,
हरी चूनर ओढ़ाकर , 
सात समुन्दर, तेरह नदियों के जल से ओतप्रोत कर,
करेगा मुझे सम्पूर्ण, 
पाऊँगी मै नव जीवन,
अपलक देख रही क्षितिज के पार,
दो आँखें मेरी कर रही इंतज़ार।।

©मधुमिता 

#सूक्ष्मकाव्य 

Thursday 27 April 2017

वक्त के पहिये



ज़िन्दगी,
जवानी,
खूबसूरती,
जूनून,
अना औ खुदी,
वक्त के पहियों पर दौड़ती
यूँही कहीं निकल जाती है।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य

वक्त



मरहम नही लगाता है वक्त,
एक सा नही रहता है वक्त,
ना करे प्यार,
ना छिपकर वार,
पर हर बदलते दिन के साथ,
जैसे भूलती बीती बात, 
हर ज़ख़्म भुला देता है वक्त ,
कुछ और जान फूंक जाता है वक्त।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य




Wednesday 26 April 2017

सिलसिला



ख़ामोश है, बेचैन है,
हैरान और परेशां भी है,
ना किसी से कोई रिश्ता
ना वाबस्ता है,
सब मानो अनजान से ,
बेनाम सब चेहरे,
कभी कोई पहचान
कौंध सी जाती है ज़हन मे,
पर ग़ायब हो जाते हैं नाम,
एक से हैं शाम और सहर,
अजनबी सा लगता शहर,
शब का सा अंधेरा दिल मे,
घर भी अब बाहरी लगे,
अपना शायद नही कोई, 
सब लगते पराये से,
ना दिन का अंदाज़ा है,
ना वक्त का कोई वजूद,
कभी खुश,
कभी नाराज़,
कभी बच्ची सी नादान,
फुसफुसाती हैं,
बुदबुदाती हैं,
ख़ौफ़ है बेनाम सा,
कोई दहशत,
नही कर पाये ऐतबार किसी पर,  
अपने बच्चों से भी जुदा है;
अफ़ाक में गढ़ी नज़रें 
ना जाने क्या कुछ तलाशती हैं,
सूनापन है,
ख़ामोशी है
और है कुछ मजबूर से अश्क,
आजिज़ी है,
अज़ाब है अज़ल, 
बेख़बर, बेज़ुबां अफ़साना और
मुसल्सल सिलसिला है।।  

©मधुमिता

 
 
 

Tuesday 25 April 2017

निःशब्द 


मै पढ़ सकती हूँ तुम्हारे हाथों की भाषा,
तुम्हारी आँखों में तैरते हर भाव की परिभाषा 
मै जानती हूँ,
हर छूअन को पहचानती हूँ,
ना खेलो मुझसे आग हूँ मै,
निःशब्द हूँ पर अबोध नही,
मूक हूँ पर निर्जीव नही,
हर वार का तुम्हारे,
प्रतिशोध हूँ मै।।


©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य

Monday 24 April 2017


धोख़ा



क्या ख़ता थी मेरी?
कमी थी क्या कोई मेरे प्यार मे
या अंदाज़े इज़हार मे!
तो क्यों तू मेरा हो ना सका?
तोड़ दिया दिल मेरा,
छोड़ दिया साथ,
ऐ तंगदिल सनम,
क्यों तूने यूँ धोख़ा किया?

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य
 

Sunday 23 April 2017

शहर हूँ मै..



आँकी बाँकी सड़कें दौड़ती हैं,द्रुत गति से,
कुछ अट्टालिकायें खड़ी हैं नशे मे चूर, मग़रूर,  
झोपड़ों से झाँकतीं कुछ आँखें भी हैं, मगर दूर,
धूल,धक्कड़, धुँए से सन गयी हूँ मै,
साँस भी घुट घुटकर लेती अब मै,
बदन पर इस्पात,सीमेंट और तारकोल है,
दिल कंक्रीट का हुआ जाता है,
ऐसे में जान फूँकती बस चंद बच्चों की किलकारी।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 

Saturday 22 April 2017

धरती माता

रो रही है वो, कर रही चीत्कार, 
मनु पुत्रों ने किया उसका चीर हरण, बलात्कार, 
पर्वत हिल गये,  जंगल सब खो गये,
हिमनद भी पिघल पिघल आँसू बन रो दिये,
ओढ़ाओ उसे हरियाली साड़ी,
जत्न कर उसे मनाओ, उसका विलाप पड़ेगा भारी,
रक्षा करो, संरक्षण दो, बस करो अब, रोको मनमानी,
आदर करो,सम्मान दो, ये धरती माता है, सबकी जननी।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 

Friday 21 April 2017

दुनिया नयी..




इस जाली के परे है एक दुनिया नयी,
बड़ी बड़ी बातों की, 
झूठे किस्से कहानियों की,
झूठे रिश्ते, झूठी मुस्कान, 
देख रही हैं मेरी आँखें झूठे आन, बान, शान,
छोटी हूँ , पर सकती हूँ तुम सबको पहचान।।

©मधुमिता
#सूक्ष्मकाव्य 

मीरा



मै हूँ मीरा,
दादी की आँखों का तारा,
देखती हूँ सबको होकर विस्मित,
अपलक और चकित,
भर लेती हूँ इन आँखों में रंग सभी,
समेट लेती हूँ मुस्कान तुम सबकी

©मधुमिता
#सूक्ष्मकाव्य




Thursday 20 April 2017




पैग़ाम 

मचल उठता है दिल 
तेरे कदमों की हर आहट पर,
हर उस खुश्बू से
जो तुझे छूकर आती है,
हर एक हवा के झोंके से
जो तेरे आने का पैग़ाम लाती है।। 

©मधुमिता
#सूक्ष्मकाव्य

मचलता दिल

मचल उठता है दिल
जब जब तू लेती है अंगड़ाई, 
बाज़ुओं में अपनी तुझे जकड़ने को,
होंठों पर तेरी 
होंठो को अपने रख
एक नयी कहानी गढ़ने को।।  

©मधुमिता
#सूक्ष्मकाव्य



Wednesday 19 April 2017

युद्ध 



ये सरहदें, ये सीमायें,
कभी युद्ध और जंग,
कभी बर्फ सा मौन, तो कभी गोलाबारी,
खून के छींटें, निस्तेज लाशें, मौत का तांडव करते हत्यारे,
बदल जातीं हैं मुकद्दर आदमी की,
मिटा जातीं हैं लकीरें हाथों की।।
©मधुमिता
जंग

क्यों बन्दूक  तुम तानते हो और गोलियाँ दागते हो?
मासूमों के खूं से क्यों ज़मीं को रंगते हो?  
जश्न मनाओ, आतिशबाज़ी करो, रंग उड़ाओ,
पर इंसानियत को ना यूँ शर्मसार करो!
गले लगा लो, अपना बना लो,
क्यों बनते हो ख़ौफ़ और हिजरत की वजह?

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 

Tuesday 18 April 2017

शतरंज



शतरंज की ही तो है बिछी बिसात,
कभी शह, तो कभी मात,
ज़िन्दगी भी अजब खेल यारों,
कभी जीत है, तो कभी बाज़ी हीरो, 
कभी गिरना, कभी उठना,
कभी मरना, कभी मारना,
जीतेगा वही अन्ततः
वलिष्ठातिजीविता।।
 ©मधुमिता

हौंसला



हौसला रख कि दिन नया आयेगा,

तेरे हिम्मत को हर कोई पहचानेगा, 

सशक्त होंगे पर तेरे, 

ना कभी तू डर,

हौसलों की उड़ान तू आसमां में भर,

है हौसला तुझमें अपनी किस्मत पलटने की,

इतिहास नया लिख जाने की, 

समय को बदलने की।।

©®मधुमिता


प्रार्थना

क्या मंदिर, मस्जिद, गिरजा जाऊँ
और आकर तुझको शीश झुकाऊँ ? 
अपनी प्रार्थना से तुझे रिझाऊँ, 
ये सारा जीवन यूँ ही खो जाऊँ
नही मंज़ूर मुझे, मानवता के उत्थान को
मिट जाऊँ, कुछ कर पाऊँ जी जान से,
बस यही वंदना मेरी,
जीवन आराधना मेरी।

©मधुमिता


चोट


कल फिर एक चोट खाई है मैने,
एक और घाव चीसे मार रहा है,
रिस रहा है धीरे धीरे 
असीम दर्द,
भयंकर यंत्रणा है,
ज़ख़्म दर्दनाक है,
दर्दिला
और दुखदाई है,
चुभता रहेगा,
दुःखता रहेगा,
रखूँगी फिर भी सहेजकर, 
दिल के क़रीब,
समेटकर,
आख़िर किसी अपने का दिया जो है!!

 ©मधुमिता

Friday 14 April 2017

इबादत


पूजा, अर्चना,
प्रार्थना,
बंदगी उसकी,
इबादत उसकी,
सब उसके बंदों की
खिदमत ही मे है।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य

Thursday 13 April 2017

खिवैय्या



एक नयी सुबह की खोज मे
फिर निकल पड़ा हूँ मै,
नयी लहरें, नयी हवा,
सब कुछ स्वर्णिम, सब नया नया,
नयी राह पर चल पड़ी जीवन नैय्या,
ना जाने किस ओर ले चला खिवैय्या।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 
स्वर्णिम 


सुनहरा आँचल,
सुनहरा आसमान, 
स्वर्णिम क्षितिज ,
सुनहरा सा गीत तेरा
ओ रे माझी! खिंचे तू मेरी डोर
लहरों संग किस ओर।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य
 
रोशनियाँ

टिमटिमाती रोशनियाँ हैं कई 
बिखरी आसमान में,
चमचमाती, मुस्कुराती,
हर अभिनंदन को समेटती,
दिलों के जुड़ने पर 
खुशियों की रोशनी बिखेरती,
और टूटे हुये दिल संग
सुबक सुबक रोती,
हर सितारा मानो एक जान,
जीता जागता,
धड़कता,
दमकता, 
रात की कालिमा को मिटाता,
अंधेरों को हराता।

करने को संरक्षित,
निरापद, भयरहित, 
तेजोमय, 
प्रकाशमय, 
मिटाने हर संदेह
और ऊहापोह,
दूर कर हर भय संत्रास,
आतंक या त्रास,
करती रौशन,
एक अद्भुत सम्मोहन
से लिप्त हर टूटा तारा,
प्रेम से भरा,
प्रेममय,हर दर्द भुलाने को,
हर दर्द के निशां मिटाने को।

चलो किसी तारे से कोई दुआ मांगी जाये,
मन के अंधेरे कोनों को रौशन किया जाये,
तंग, स्याह नज़रिए को बदल,
रोशनी की ओर चल,
मुहब्बत को महकाया जाये,
किस्मत को कुछ चमकाया जाये,
जलते चिरागों से ये सितारे,
मानों दिल हों मुहब्बत भरे,
हर ऊँचाई को छूते,
हर टूटे दिल को हाथों में भर लेते,
कभी चहकते,
थोड़ा महकते,
चमचम चमचम मुस्कुराते,
हर आशिक को राह दिखाते।।
  

©मधुमिता

Wednesday 12 April 2017

धमाल




कुछ आँकी बाँकी सी,
कुछ टेढ़ी मेढ़ी सी,
मदमस्त चाल देखो किस्मत की,
ना रुकी है,
ना थकी है,
देखो तो धमाल ज़रा किस्मत की!

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 
किस्मत



पेशानी पर होती है लकीरें किस्मत की,
दर्ज होती है तरन्नुम ज़िन्दगी की,
मेरी लकीरें तो तेरी लकीरों से जा जुड़ी हैं,
बता तो अब किस्मत किसकी?


©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 



Monday 10 April 2017




जीवन


इत्र की महक,
चिड़ियों की चहक,
हवा तूफानी,
बहता हुआ पानी,
अस्थाई, चलायमान, क्षणिक
यह जीवन और हम सब आते जाते पथिक।।

©मधुमिता


ज़िन्दगी



खूबसूरत है तू, इक पहेली है तू,
कभी अंजान सी, कभी सहेली है तू,
कभी हँसती,कभी रुलाती,
छुपती छुपाती, खूब भगाती, 
दबे पाँव आकर कभी ढप्पा बोल जाती,
ऐ ज़िन्दगी कितने रंग तू दिखा जाती।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य

Saturday 8 April 2017


चाँद



गेसू लहरा रहे हैं,
नज़र झिलमिला रही है,
बला की खूबसूरत ये मुस्कान तेरी
बता रही कोई कहानी नयी,
एक नूर सा गज़ब का है चेहरे पर तेरे,
क्या चाँद पा लिया है तूने?

©मधुमिता
#सूक्ष्मकविता

#micropoetry 

जान


थोड़ी सिरफिरी,
ज़रा मनचली, 
एक ग़ुलाबी सी धड़कन हूँ,
मदमस्त सी थिरकन हूँ,
होंठों पर खेलती मुस्कान हूँ मै,
धमनियों मे तुम्हारे दौड़ती जान हूँ मै।।

©मधुमिता
#सूक्ष्मकविता
#micropoetry 




नूर



जज़्ब हो गया चेहरा उसका
दिल की रानाईयाँ भी रौशन हुईं,
रोशनी नसों में थिरकने लगी,
ज़र्रे ज़र्रे से नूर टपकने लगा,
इक नूर आसमां मे है
इक नूर मेरे दिल ही मे है।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकविता 
#micropoetry






रोशनी



रोशनी की मानिंद,
नूर चेहरे पर लिये,
मेरे स्याह जीवन को रौशन करने,
देखो फिर आ ही गई
रोशनी एक नयी सुबह की!

©मधुमिता

#सूक्ष्मकविता
#micropoetry