Thursday 25 November 2021

चाय-काॅफ़ी

 


चलो एक चाय हो जाये
या गर्म काॅफ़ी पी आयें
ज़र्द पड़े पलों को
रंगों से सजाया जाये
कुछ खुश्बू हम समेटें
कुछ रंग तुम बिखराओ
वक्त के पन्नों से
चंद नये पल चुरा लाओ
मीठे से पल
मीठी सी काॅफ़ी
ज़रा कड़क सी
पर शक्कर वाली
सपनों के क्षितिज को महकाती
मधुरम बनाती
प्याले के अंदर सिमटती
ज़रा मचलती
ज़रा छलकती 
मंद मंद मुस्काती
थोड़ा शरमाती
थोड़ा सकुचाती
फिर एकटक निहारती
मुझे और तुम्हें
और खोजती 
वो पुराने दिन कई
स्वाद से लबालब
मीठे और मधुर
सुर-ताल में लयबद्ध 
संगीतमय
जिसकी धुन बजती है 
अभी तलक दिल में हमारे 
और जीवंत हैं 
नस नस में सभी 
जो अंकित हैं अभी भी
इन शीशे से पलों में 
रंगों की बौछार लिये
खुश्बू की सौगात लिये 
बिल्कुल उस प्याली
और उसमें नाचती 
उस काॅफ़ी की तरह
जो आतुर है
लब हमारे छू जाने को
हम में सिमट जाने को
उन बीते लम्हों की मानिंद
जो सिमटी हैं उस प्याली में 
समेटे ख़ुद में 
जन्म भर की यादें 
और एक चुस्की भर का अंतराल
चलो ना एक चाय हो जाये
या गर्म काॅफ़ी ही पी आयें

©®मधुमिता