यादों के दरख़्त
खुशबू से होते हैं
मन को महकाते हैं
और आत्म से
वे लिपट लिपट जाते हैं
मेरे वजूद का हिस्सा हैं वे
बीता कोई किस्सा हैं वे
इतिहास के पन्ने सा
पर करीब है अपने सा
ना वो जकड़ते हैं
ना ही साथ छोड़ते हैं
ख्रामोश तवारीख़ से
कभी किसी सीख से
चंदन के भुजंग से कभी
तो रेशमी सतरंग कभी
नर्म गर्म से मख्रमली और शीतल
विस्मयकारी इनके अंतस्तल
कभी गुदगदाते
कभी प्यार से सहलाते
ये यादों के दरख़्त
साथी से होते हैं
ऐसी ही इनकी छांव भी होती हैं
भूल जाओ कभी तो झकझोरती हैं
ज्ञान चक्षु भी खोलतें हैं
दिल को टटोलते हैं
मुझको तो ये यादों के दरख़्त
किताबों से लगतें हैं
अथाह अनंत का राज़ छुपाये
ख्रामोश खड़े ये मुझको पढ़ते हैं
©®मधुमिता