Wednesday 20 April 2016

हाँ यही है प्यार 



स्याह,अंधियारी,सर्द  चादर  
के  नीचे,  गर्माते से 
सपनो  के  हसीन  रंग, 
शरमाती  ये  नज़रें ,
जलतरंग  है  अंग l

हलचल से मचाते कुछ जज़्बात, 
आँखें करती आँखों से बात,
शबनमी सी साँसें,
गुलाबी सा मौसम ,
उलझीं जो ये नज़रें तोसे।

दिल से यूँ दिल का खिंचाव ,
है नसीबों का अजीबोगरीब जुङाव,
प्रीत के धागे जो तुमसे उलझे,
अब तुम्ही सुझाओ 
कि ये कैसे सुलझे ।

बहकी बहकी सी मैं फिरूँ,
चहकती-लहकती सी मैं रहूँ,
अजीब नशे में मै डूब रही,
सम्भलने की लाख़ कोशिश करूँ,
फिर भी मैं लङखङा रही ।

दिल गुलज़ार है,
दबे से इज़हार हैं,
सितारे आसमां से देखते हैं,
मै ठहर सी जाती हूँ,
जब हर तरफ जुगनू से जलते हैं ,

कुछ सोचे सूझता नही,
कुछ कहते भी बनता नही,
आह सी कमबख़्त निकल आती है, 
तेरी तस्वीर देख ,
सादी सी शक्ल भी मेरी, खुदबखुद संवर जाती है।

मदहोशी  का रुमानी अहसास, 
तोसे मिलन को तकती हर आस,
साँसों की लयबद्ध झंकार 
कहे जा रही ये बारम्बार ,
हाँ यही है, यही तो है प्यार ll

-मधुमिता

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