मौत
उन निस्तब्ध पदचापों को
जो धीमे-धीमे बढ़ती हैं
शांत सी
फिर भी
ख़ामोशी को चीरती
स्याह चादर में लिपटी
डरा- डरा जाती है
कौन है जो बढ़ा रहा है कदम
अपने मेरी ओर
अहसास होता है
किसी सर्द छुअन का
निर्जीव परंतु जीवित
शिथिल सी पड़ी हूँ
जड़ फिर भी चेतन
मेरा हाथ अपने हाथ में ले
वो तैर गया
रंगीन वादियों में
खुले आसमां में
जुगनुओं संग अठखेली करते
बिना पर के उड़ते-उड़ते
दिशाहीन से
हर दिशा में विचरते
हर बंधन से दूर
ना मोह ना माया
ना खून का रिश्ता
ना कोई जरयुनाल
बस हवा
और हवा से हम
समझ गयी
कि छूट चुकी हूँ
मुक्त आज़ाद
मुस्कुराये हम
गले लग गयी उसके
थाम लिया मुझको उसने
हाँ थाम लिया मुझको उसने
जिसको सब कहते हैं मौत
©®मधुमिता