क्या होती है रुमानियत
पूछो उस चाय की प्याली से
नाज़ुक हल्की भरी सी
जिसे दो लब छू भर जाते हैं
पल पल हर दिन
और फिर मिटा जाने को
वो हर ख़ूबसूरत निशां
एक इंतज़ार फिर
उन लम्हों का
उन लबों का
उन अहसासों का
गर्म जज़्बातों का
लम्हा लम्हा
पलछिन पलछिन
©®मधुमिता