Thursday 28 July 2016

कर सको तो.....




किताबों के ज़र्द पन्नों के बीच

एक गुलाब आज भी रखा है,

जिसकी खुशबू आज भी

सिर्फ मेरे लिये है,

चुरा सको, तो चुरा लो!



लाईनों वाले पन्ने पर लिखा वो ख़त,

उसका एक-एक लफ्ज़ 

ज़िन्दा है आज भी, 

बस मेरे ही लिये, 

मिटा सको,तो मिटा दो!



सफेद चादर की सलवटों में

आज भी तेरी गरमाईश 

कुछ अंदर तक जज़्ब है,

हाँ मेरे लिये,

बर्फ कर सको,तो कर लो!



आज भी मेरे हाथों में हैं 

खूशबू तुम्हारे बदन की,

कितना भी तुम चाह लो,

चाहे मनुहार कर लो,

नही तोङ सकती तुमसे,

बंधन अपने तन और मन की।



हर तरफ तेरी यादें हैं, 

हर कोने में तेरे वादें, 

आँखों में तेरी सूरत,

मन मंदिर में तेरी मूरत,

मिटा ना सकेगा कोई कभी

ये छब मेरे यार की।



गुलाबी चुनरी मे

आज भी बंधे रखे 

हैं,कुछ तेरे मुस्कान,

जिला रहा है नर्म 

गुलाबी प्यार तेरा

जो बन गयी,अब मेरी जान।



अहसास तुम्हारी उंगलियों की

कराता अब भी,मेरे कानों की बाली का मोती,

चूङियों की खनखन करे

बातें हरदम बस तेरी,

पायल की झंकार 

भी बस,नाम तेरा ही ले बार-बार।




पुरानी तस्वीरें चमकने लगतीं

सूरज की रेशमी किरणों में,

आस की प्यास जगा जाती

हरजाई,दीदार को तेरे,

लहु का दौरा भी मेरा

पहुँच रहा दिल तक तेरे।



फूलों में भी रंग छिङके हैं 

देखो,हम दोनो के प्यार के,

तितलियाँ भी उङती फिरतीं,

हरियाली में तुझको ढुढ़ती, 

खुशबू के तेरे पीछा करती,

बदहवास सी भागती रहती।



रात के साये में 

तेरे सीने में शरमाकर मुँह छुपाना, 

तेरे सुलगते होठों का,मेरे माथे को चूमना,

आज भी सुलगा रहा है मुझे,

बुझा सको,तो बुझा दो!



रात के स्याह आँचल से ,

कुछ यादों के सितारे हैं बंधे,

चमचमाते,ठिठोली करते,

मेरे स्मृति की हमजोली ये,

तोङ सको,तो तोङ लो!



इन यादों में तुम ही तुम हो,

आँखों में बस, तुम बसे हो,

ये तन और मन कभी के हुये तुम्हारे,

ये हाथ भी कबसे थमाये, हाथों में तुम्हारे ,

दामन को मेरे तुम ,झटक सको,तो झटक दो!! 



©मधुमिता

Monday 25 July 2016

सपनों का वो द्वीप 




हमारे सपनों का वो द्वीप, 
सागर के थपेड़ों के बीच,
स्वप्न जिसे रहे थे सींच,
भरे थे जिसमें मोती और सीप,
जलते थे जिस पर असंख्य दीप,
बजते रहते प्यार भरे मधुर से गीत।


वह पथरीला,हरा भरा सा टापू,
फैला जिसमें हरे काई का जादू,
कहीं मटमैली फिसलन,
कहीं गुलाबी जकङन, 
कहीं बदनों को सहलाती हवा,
कहीं दो धङकते दिल,जवां,
जैसे तुम्हारे अधरों से गीत निकलते
और चारों ओर गूंजते,
वहीं कहीं हरी सी काई रेंगती,
अपनी ही गंध में कौंधती,
मखमली कालीन सी लिपटी
उन सुंदर गुफाओं से, चिपटी
हुई, मानों जान हो उनकी,
निर्जीव पहाङी दीवारों में जान फूंकती।


वहीं एक नन्हे से दरार में, 
हवा के बयार में, 
वह रंगीन सा फूल जो डोल रहा था,
हमारी खुशियों में मस्त, इतरा रहा था,
जादुई उसकी बोली थी,
कुछ मूक शब्दों की टोली थी,
जो तुम्हारा नाम ले पुकारती,
फिरकी सी आती लहर जब बूंदों से उसे संवारती,
हर पेङ, हर दरख़्त हमें पहचानते,
हर पंछी,हर प्राणी वहाँ,हमें अपना जानते,
हर लता तुम्हारे हाथों को जाती थी चूम,
हर तरू साथ जताता झूम-झूम,
उस ऊँचे से पथरीली गुफ़ा में,
नाज़ुक से दिल, हमारे ही बसते थे।  


वह पथरीली,ऊँची सी दीवार,
मानों बंद करती हुई सारे द्वार,
बस एक मै और एक तुम,
सिर्फ दो हम,
पूरी दुनिया से हटे हुये,
हर जाने-अंजाने से कटे हुये, 
बस एक दूसरे में सिमटे,
दो दिल एक दूजे की आगोश में लिपटे,
तुम गीत मेरे सुनती,
मुझे अपने संगीत लहर में बहाती,
अंदर तक भिगो जाती,
उस पगली लहर सी जो पत्थर के सीने से टकराती,
टकराकर उसे नहला जाती,
अपनी शीतलता दे जाती।


मेरे गीत गाते मेरे प्यार का अफ़साना,
तेरे बारे मे चाहते हर एक को बताना,
चारों दिशाओं में फैला था बस प्यार,
इंद्रधनुषी सा ग़ुबार, 
जिसमें सिमट कर रह गयीं थी लहरें,
धरती, अम्बर, समय के काफिले, 
समुन्दर,वह टापू और सारे फूल,
काई,सैलाब,रेतीली धूल,
वह अधखुला सा बीज,
धरती की छाती के बीच
जो अपने अधर धर रहा था,
आसमान पर जो रूपहला बादल विचर रहा था,
सब हमारे प्यार की कहानी सुनाते थे,
हर पल हमें गुनगुनाते थे।


हर हवा हमें  पहचानती थी,
हर ऋतु हमें अपना मानती थीं,  
रेशमी फूलों ने हमें संवारा था,
तारों ने चमचमाता चादर ऊपर बिछाया था,
यहीं कहीं हमारा प्यार था पनपा,
हर क्षण के साथ था बढ़ता,
हमारा प्रेम बिखरा था रातों में,
सूरज के किरणों में,शर्मीली शामों में,
हवा भी कभी तुम्हारा,कभी मेरा नाम पुकारती,
लहरें भी हमें अठखेलियों को बुलाती,
फूल,फल, मिट्टी, पेङ,
शाखा, पत्ते,कली और जङ,
सब थे हमारे प्यार के साक्ष्य,
यहीं था हमारा छोटा सा साम्राज्य।


तुम्हारा नाम ले लेकर मेरे लब,
लेते तुम्हारे सूर्ख़ अधरों का चुम्बन जब,
तब समां भी सूर्ख़ हो जाता था,
वह सूर्ख़ गुलाब भी शरमा जाता, 
जिसकी हर पंखुङी पर नाम तेरा लिखा था मैने,
जिस तरह हर गुफा की दीवार पर मेरा नाम लिखा था तुमने,
साथ-साथ हम चलते चलें,
एक दूजे संग बढ़ते रहे,
ना कोई भेद,ना छुपा कोई राज़,
ज़िन्दगी के बोलों पर बजाते प्यार का साज़,
तुम मुझमें, मै तुम मे शामिल, 
दोनो बस मुहब्बत के कायल, 
दो दिल और जान एक हो चुके,
दोनों ही एक दूसरे के दिल में छुपे ।


हमारे सपनों का वो द्वीप, 
सागर के थपेड़ों के बीच,
स्वप्न जिसे रहे थे सींच,
भरे थे जिसमें मोती और सीप,
जलते थे जिस पर असंख्य दीप,
बजते रहते प्यार भरे मधुर से गीत।

©मधुमिता

Friday 22 July 2016

छब तेरी



पथराई सी आँखें मेरी
ढूढ़ती है सिर्फ तुझको,
रूंधी सी आवाज़ भी 
अब,बुला रही बस तुझको,
मंद पङती धङकनों में 
अब भी बाकी है थाप तेरी,
साँसों की संगीत के
आरोह-अवरोह भी बस तू ही।


खामोशी भी अब शोर मचाती है,
झींगुरों के कलरव को दबाती है,
रात की स्याही तले,
टिमटिमाते से दो नयन मेरे,
तकते द्वार के परे,
मिलन की आस लिये,
जीवन की जीर्ण डोर को थामे,
यूँ ही कट रही मेरी सुबह और शामें ।


घूम आता है मेरा बावरा मन,
फिर-फिर धरती और गगन,
पाने को तेरी एक दरस,
प्यासी धरती सी,रही मै तरस,
सुनने को तेरी पदचाप, 
ले रही साँसें चुपचाप, 
कहीं तेरे कदम,बिन बोले गुज़र जायें,
मुझसे बिन बोले,बतियाए ।


शिथिल सा मेरा बदन,
हर पल मचलता मेरा मन,
तेरी झलक पाने को बस ये दिल धङक रहा है,
बेसब्री से इंतज़ार तेरा,मेरा रोम-रोम करता है,
सूखे से कुछ ख्वाब अभी भी लटक रहे हैं,
मद्धिम पङती साँसें, आस की जाली में अटक रहे हैं,
बंजर से इस मन को कब्रगाह बनने में कुछ ही देर है,
आस की डोरी के चटकने भर की देर है।


आजा कि अब पलकें भी लहुलुहान है,
पत्थर सी आँखों पर झपक-झपक हैरान है,
साँसें भी अब आस का दामन छोङने लगीं,
धङकनें भी अब सुस्त पङ,थके हुए डग भरने लगीं,
जमने लगा है कोशिकाओं में रुधिर,
अस्फुट से बोलों के बीच बंध गये हैं अधर,
अविरल सी धाराओं में बह रहा है मेरा प्यार,
रो-रो कर ये नयन और कितना करें इंतज़ार ।


अब रहम कर इस बुझती लौ पर,
एक हाथ बस अपना रख दे सर्द माथे पर,
संभलती नही हैं साँसें अब,
ना जाने ये साथ छोङ जायें कब,
बंद हो रही ज़ुबां मेरी,सूख गये हैं लब, 
जब मै ना रहूँगी,क्या आयेगा तू तब!
इससे पहले मैं अलविदा कह दूँ,आखिरी झलक दिखा जा,
बंद कर तुझे आँखों में ले जाऊँ मैं,अब तो छब दिखला जा ।।

©मधुमिता

Friday 15 July 2016

उपस्थिति तुम्हारी 



क्या तुम्हे याद है वे दिन,
जब सर्दियों की मखमली सी
धूप में बैठ
हम सपनों की दुनिया की सैर को जाते थे!
ख्वाबों के सुन्दर से द्वीप पर
जब हम जाकर बस जाते थे,
समुन्दर  की एक गर्म सी लहर
छूकर हमे निकल जाती थी,
अंदर तक सिहरा जाती थी।

फिर डूब जाते थे हम प्यार के
अथाह सागर मे ,
हाथों मे,एक दूजे का हाथ लिये
हम आगे चलते जाते,
जहाँ पेङों और दीवारों पर चढ़ती लतायें
करती थीं कानाफूसी, 
और हल्के से खुद को झाङकर,
कोई पत्ता गिरा देती थीं 
ठीक सामने हमारे,अवरोध की तरह,
जैसे हम चुप से गुज़रने लगते।

गहरा सा वो पत्ता,
गहरे हरे रंग का,
सोने सी रेतीली धरती पर,
किसी पन्ना सा चमचमाता, 
नाज़ुक सा,
हमारे पैरों की धमक से
फङफङाता,
ठीक उसी तरह जैसे तुम धङकती,  
हल्के से फङफङाती,
मेरे सीने में ।

हवा का झोंका धीरे से 
उस पत्ते को उङा ले जाता,
जैसे ज़िन्दगी तुम्हे उङा कर ले आई
मेरे जीवन में, 
डाल गयी तुमको मेरे अन्तर्मन में, 
हम साथ चलते रहे,
ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते रहे,
तुम भी त्यों-त्यों उगने लगी,
बढ़ने लगी,पीपल की भांति,
घर करने लगी मेरे अंदर।

पीपल के घेरे की तरह,
तुम्हारा क्षेत्र भी बढ़ता रहा,
मेरे तन और मन पर पूर्णतया 
तुम्हारा ही आधिपत्य था,
जैसे पीपल की जङें
धरती की छाती को भेदकर
अंदर तक जाती हैं, 
तुम्हारी जङें भी
मेरी छाती को भेदकर
मेरे भीतर घर कर गयीं हैं ।

नदी की धाराओं सी दिखती
वे रेशमी जङें, 
गहरे तक अपने पैर पसार कर
मेरे खून की धाराओं से मिल जातीं हैं,
उन्ही के रंग में रंग जातीं हैं,
सूर्ख़, लाल,
मेरे पूरे शरीर में दौङतीं,  
मुझमें,तुमको भरती,
तुमने मुझे,तुम बना दिया था,
नये से रूप में मै दिखने लगा था।

तुमने मेरे अंदर,
तन और मन के भीतर 
खुद को बसा लिया था,
तुम मेरे साथ 
और मै तुम्हारे साथ,
दोनों साथ-साथ खिलने लगे,
मेरे लब भी तुम्हारी ज़ुबान 
लगे थे बोलने
और मेरी मुस्कान 
खेलती थी अब तुम्हारे होंठों पर।

बेखौफ़,बेपरवाह 
हम चले जा रहे थे,
उस बेपरवाह लहर की तरह
जो छू गयी थी उस दिन हमे,
मेरे भीतर तुम्हारी उपस्थिति 
उस हरे पत्ते,पीपल,
उसकी जङों और शाखों की तरह
एक उम्र से बंजर पङे 
मेरे सूने दिल को,
लहलहा गया,हरा भरा कर गया था।

मेरे दिल में अब मंदिर की घंटियाँ बजातीं,
मधुर संगीत भी बजता,
रोज़ नयी महफिलें सजतीं, 
फूलों के तोरन सजते, 
रंगोली सजती,
जहाँ अंधेरा घना हुआ करता था
वहाँ हर कोने कोने में 
चिराग अब रौशन थे
क्योंकि मेरे नन्हे से दिल में 
अब तुम जो बसती थी।

©मधुमिता 

Wednesday 13 July 2016

जलन

मै कभी भी तुमसे परेशान नही हो सकता,
कभी नही,किसी सूरत मे भी नही।
तुम कभी मुझे हैरान नही कर सकती,
गर ऐसा हुआ, तो बहुत हैरानी होगी।
तुम चाहे कुछ भी करो मुझे नाराज़ करने को,
मै तुमसे कभी भी रूठ सकता नही।
तुम कितनी भी कोशिशें कर लो मुझे जलाने की,
कोई जलन कभी मुझे छू भर भी सकती नही।


तुम चाहे किसी गैर के साथ आओ,
किसी भी पुरुष के साथ जाओ,
चाहे हज़ारों लब तुम्हारे जुल्फों में दिखें,
या सैंकडो दिल तुम्हारे सीने में बसे,
चाहे कितने ही आशिक तुम पर हों फ़िदा, 
अपना दिल लिये बैठे रहें, तुम्हारे कदमों में सदा,
तुम उफनती नदी की तरह ,
इन दिलों के बीच डूबो,उतरो किसी भी तरह,
अपनी अल्हङ जवानी के ज्वारभाटे मे,
इन दिलों से विनाश के खेल से
खेलती,तूफ़ानी,बरसाती नदी सी,
हर उस शख्स को खुद मे समेटती सी,
कहीं दूर बहा कर ले जाओ,
जीत पर अपनी इतराओ,
अट्टहास करती,मानो पगली सी धार,
खेलो तुम इनसे,अपने खेल हज़ार, 
समय के हरपल बदलते चादर तले,
तुम्हारी चाह मे,चाहे कितने भी दिल जले, 
मै नही जलूँगा फिर भी,
मिलूँगा तुम्हे यहीं पर ही।


मै चुप देखता जाऊँगा,
मुँह से अपने, कुछ भी ना कभी मै बोलूँगा,
तुम चाहो तो ले आना उन सबको,
रोकूँगा नही तुमको,
उन सबके बीच महसूस कर पाऊँगा सिर्फ तुमको,
इन व्याकुल सी बाँहों में भर लूँगा तुमको,
तुम्हे पाने को मै सदा तङपता रहूँगा ,   
खामोश सा, यूँही, बस इंतज़ार तुम्हारा करता रहूँगा।


फिर तुम आना जब तुम अकेली रह जाओगी,
अपनी कूद फाँद से,थकी सी।
जब हम दोनों ही होंगे, 
सिर्फ मै और तुम, अकेले से।
फिर हम दोनों एक हो जायेंगे, 
बसायेंगे एक दुनिया,नयी सी।
तब तक मै शांत,शीतल सा जलता रहूँगा,
तुम्हारे प्रेम अग्न में, नही किसी जलन से।।

©मधुमिता

Tuesday 12 July 2016

वह सांझ 



देखो वह सांझ,
बिल्कुल वैसे ही आज
भी,जैसे तब थी,
जब छुपी होती
मै,तुम्हारी बाँहों में थी,
मै ही दुनिया थी
तब बस तुम्हारी, 
मै भी तुम पर थी अपना दिल हारी,
खो दिया हमने उस मखमली सांझ को,
रेशम से अपने कल और आज को।


खूबसूरत सी सांझ,
और ठंडी पङती सूरज की आंच,
मै और तुम साथ-साथ,
एक दूजे के हाथों में हाथ, 
चुपके से हम निकल लेते,
हर नज़र से बचते बचाते,
दूसरों से नज़रें चुराते,
जैसे ही गुलाबी-सलेटी संध्या को छिपते-छिपाते, 
चुरा ले गयी गहरी सुरमई सी,
तारों टंकी, रूपहली रात ही।


मैंने अपने झरोखे से कई बार है देखा,
डूबते सूरज की अद्भुत छटा, 
मन की आँखों से देखा है अनेको बार,
दूर देश,सात समुन्दर,तेरह नदियों पार
पहाङों के पीछे जा छुपता,
संतरी सा सूरज का चेहरा, 
मानों जैसे सुनहरा सिक्का,
गोल-गोल सा कभी हाथों में मेरे आ बैठता,
जला जाता था मेरी हथेली को,
दे जाता था,कई फफोले वो।  


तब मै तुम्हे याद करती थी दिल से,
सच,पूरे मन से,
महसूस करती थी तुम्हे वहीं,
मेरे गले में डाले बाँहें अपनी,
ठंडक सी पहुँचा जाते थे दिलो जान मे,
समा लेते थे मेरी आत्मा को अपने में,
अपने होंठों के चुंबन से पोंछ जाते,
जितने भी मेरे दर्द तुम वहाँ पाते,
रोम रोम मेरा तुमको छू-छू जाता,
तुम ना होते,पर तुमसे आलिंगन बद्ध हो जाता।


कहाँ थे तुम तब?
मुझे ज़रूरत थी तुम्हारी जब,
थे तब तुम किसके साथ?
क्या करते थे मेरी बात
अपने साथी से?
आती थी क्या मेरी भी याद,भूले भटके से?
मै भी तो तुम्हारी दुनिया का हिस्सा हूँ,
तुम्हारे दिल के एक कोने में मै भी तो हूँ, 
मेरा दिल तो कभी का तुम्हारा हुआ,
खुद को भी था तुम्हारे हवाले किया।


फिर क्यों मेरे प्यार की दुनिया,सिर्फ मेरी थी!
प्यार की अग्नि में बस मै जलती थी!
जब दिल दुःखी होता था
और तुम्हे आसपास मांगता था,
तब सिर्फ मेरा प्यार मेरे साथ होता,
तुम्हारा साया तक ना कभी करीब होता,
एक मायूस से,मासूम पिल्ले जैसा,
प्यार मेरा,मेरे पैरों के पास आ बैठता,
मानों करता हो ढेरों फरियाद,
बस मन में प्यार पाने की आस।


हर जीवन की शाम तुम्हारा प्यार और कम हो जाता,
जैसे उन पहाङों के पीछे रोज़ सूरज गुम हो जाता,
सांझ की मद्धिम सी रोशनी,
यादों के अक्स पोंछती,
कुछ ज़िन्दा सी तस्वीरें, 
सांसें लेती धीरे-धीरे ,
रोज़ मेरी पलकें हैं उन्हें बुहारती,
ज़रा धुंधली सी पङती,पर जीवन में मेरे रंग भरती,
आज भी वह सांझ वहीं है ठहरी,
प्यार भरा दिल लिये,जहाँ मैं अब भी खङी।।

©मधुमिता 

Saturday 9 July 2016

सजना 


बैठी हुई वो दर्पण के सामने,
आने वाला है कोई हाथ थामने,
आँखों में रंगीन सपने,
सरपट भागती सी धङकनें।

एक अनजाना सा डर भी है, 
खुशियों का सागर भी है,
करनी उसको तैयारी है,
बहुत सी,ढेर सारी है।

मचला उसका दिल हल्का,
हल्के से आँचल ढलका,
ज़रा सा आँसू छलका,
मौन था गूढ़, दो पल का।

फिर करने लगी श्रंगार, 
पहले चढ़ाये कंगन चार,
फिर गले में मोतियों का हार,
झुकी तो कर उठी,पैरों मे पायल झंकार।

कानों में हीरों के बूंदे, 
जिनमें वो अपना अक्स ढूंढे,
बैठी चुप,मन की आँखें मूंदे,
बोलना चाहे पर आवाज़ भी रूंधे।

छोङना नही चाहे वो बाबुल का द्वार,
फिर भी है जाना,इस देश के पार,
धीरे से आँखों में खींची काजल की धार,
सुकोमल गर्दन पर चढ़ाया,रत्नों जङा,पुश्तैनी हार।

बाल काढ़ कर जूङा बनाया,
उसपर रेशमी चूनर उढ़ाया,   
फूल गूंथ,माला बनाया, 
माला को जूङे पर लिपटाया।

करधनी,चूङी और टिकुली,
होंठों और गालों की सूर्ख़ी, 
माथे पर सजी सूर्ख़ बिंदी,
तब उठी पलक उसकी।

अपने को निहारती,
इस नूतन रूप को पहचानती,
अपने से ही शरमाती,
मन ही मन वो मुस्काती।

बन गयी देखो वो दुल्हन,
ले जायेंगे उसको साजन,
हार गयी है वो अपना मन,
हो गयी तैयार,छोङने को अपना आंगन।

तैयार चलने को देश ऋपराये,
अपना हाथ सजना को थमाये,   
खुद को उनकी दुल्हन बनाये,
अनगिनत खुशियों के सपने सजाये।

देखो तो कैसे सज गयी  है,
कितनी सुंदर लग रही है,
अप्सरा सी दिख रही है, 
कितनी ज़्यादा जंच रही है।।

©मधुमिता

Thursday 7 July 2016

लहर और किनारा


समुंदर की मदमस्त, पगलाती सी लहर,
कभी खामोशी से धरती को जाती छू भर ,
कभी उसकी छाती पर ढा जाती कहर,
सुबह शाम, सांझ और सहर, 
बीच में खङे बङे बङे से चट्टान,
पत्थर कई, मानों नन्हे पहाङ,
ये लहर जब इनसे टकराती है,
टूटती नही,एक नया रूप ये पाती है।

शांत चट्टानों से लिपटने को पगली आती है,
फिर चूर चूर हो जाती है,
अनगिनत बुलबुलों के रूप में,आसपास मंडराती है
दिन की रोशनी भी इनमें से हो,बिखर बिखर जाती है,
रात की आँखों से चुराकर,सुरमा ये लगा लेतीं हैं,
अपने ही नमक से ये खुद को नमकीन बना लेतीं हैं,
अपने ही प्यार की हो जाती है,
यहीं बस कर रह जाती है ।

पानी का ये अनंत बवंडर,
मानों जैसे एक भंवर,
पल में बने बुलबुलों का झुंड ,
रौशन करे छोटा सा जल कुंड,
रेतीले साजन के सीने पर चम्पई सी झाग,
ऊपर जलता सूरज और लगाता आग, 
आते असंख्य सीप और शंख,
जो पा चुके अपना अंत,
फिर जोहते दूजी लहर की बाट,
शायद ले जाये जो उन्हे अपने साथ,
जो क्षितिज को भी छोङ ना पाये,
दो हिस्सों में बंट कर रह जाये।

चढ़ता उतरता सागर,
उसपर लहर दर लहर,
कभी टूटती लहर,
कभी टूटता उनका नमक,
कभी तो सागर दहाङ मारता,कभी चुप,
पल पल बदलता उसका रूप, 
कभी चमकीली सी छलांगें लगाना,
तो कभी शून्य में गायब हो जाना।    

सलेटी और श्वेत की धारें,
पानी की ऊँची-ऊँची मीनारें, 
कभी मख़मली कपङे सी भांज
पर मंडराती,कल और आज,
पानी के इन कतरनों में,
बेहिसाब इन आईनों में, 
लगातार रेतीला सीना नज़र आता है,
लहर और किनारे का मासूम सा,अनोखा प्यार नज़र आता है।।

©मधुमिता 

Monday 4 July 2016

मैं हूँ,क्योंकि तुम हो 



मैं हूँ, क्योंकि तुम हो,
वरना शायद मैं हूँ ही नही,
तुम्हारे अस्तित्व के बगैर मै भी ना हूँगी,
तुम नही होगे,तो मै भी ना रहूँगी ।

बस्तियों में, फिज़ाओं में,
ठंडी-ठंडी हवाओं में,
ऊँचे पहाड़ों तलक,
ज़मीं और फ़लक
तक,मुझे पंख देकर
ले जाते हो उङाकर,
घने,बर्फीले कोहरे से,
काले घने अंधेरे से,
तुम्हारे अंदर की रोशनी, 
मुझे निकाल ले जाती यूँ ही,
मानो उस कोहरे को काटना,
अंधेरे को  झट चीरना,
बस बायें हाथ का खेल हो तुम्हारे,
हर चीज़ से लङ लोगे,जो आये बीच हमारे,
बङे-बङे पहाङ,पर्वत,रोङे, 
अदृश्य से असंख्य महीन डोरें, 
जो रोक रहीं थीं कदम हमारे,
कोई जीत ना पाया,सब हारे।

तुम ही तो हो मेरे स्वर्णिम किरण,
स्वच्छंद,कुलांचे भरता हिरण,
जैसे मेरा हरपल हरकत में आया मन,
मेरे हीरे,जवाहरात,मेरा हर धन,
इत्र की महक तुम,
ज़िन्दगी का सबब तुम,
गुलाबों की महक हो,
अंगारों की दहक हो
कभी,तो कभी पूनम के चांद से शीतल,
शीतलता बहती जिससे अविरल,
जुगनुओं की चमक कभी,
पंछियों की चहक कभी,
कभी प्यार मेें तपता सूर्ख़ गुलाब,
कभी ठंडा सा कर जाता आब,
ना जाने कितने रंग छिपे हैं, 
कितने तुमने रूप धरे हैं,
चुपके से मुझमें हो गये दाख़िल, 
होने को मेरी ज़िन्दगी में शामिल ।

हर चीज़ आज पीछे है मेरे,
क्योंकि सब पीछे हैं तुम्हारे, 
यूँ ही मैं तुम हुई,तुम मै हुए, 
और मै और तुम,दोनों हम हुए,
यह है हमारा प्यार,
तुम्हारा और मेरा प्यार, 
जो रहेगा यूँ ही बरसों,
जवां सा आज,कल और परसों,
ढलते रहेंगे दिन और रात, 
चलता रहेगा हमारा साथ,
एक साथ लिखेंगे एक हसीन कहानी,
खुशियों से भरी,थोङी रुमानी, 
ये प्यार ही है जिसने मुझे थामा है,
तुमको भी थामा है,
तुम्हारा प्यार मुझे यहाँ ले आया,
मेरा प्यार तुमको मुझ तक लाया,
ये प्यार हमको एक कर गया है,
मै और तुम से हम बना गया है।    

तभी तो, मैं हूँ, क्योंकि तुम हो,
वरना शायद मैं हूँ ही नही,
तुम्हारे अस्तित्व के बगैर मै भी ना हूँगी,
तुम नही होगे,तो मै भी ना रहूँगी ।।

-मधुमिता

Friday 1 July 2016

मेरी मासी (माशीमोनी)


खूबसूरत एक रानी सी,
ज़िन्दगी की रवानी सी,
हर पल भागा दौङी और काम ,
जब भी देखो,सुबह और शाम ।

मुझे अपनी गोदी में खिलाया,
उंगली पकङ चलना भी सिखाया,
अपने हाथों से खाना खिलातीं,
सारा दिन वो लाङ लगातीं।

सुंदर-सुंदर से कपङे बनातीं,
उनपर फूल पत्तियाँ काढ़तीं, 
फिर उनको मुझे पहनातीं,
मै थी उनकी गुङिया कहलाती।

दिन वह कितने अच्छे थे,
हम सब उनके जब बच्चे थे,
एक साथ खेलना और खाना,
फिर उनके साथ ठंडे से फर्श पर सो जाना।

क्या कूछ नही वो बनातीं थीं,
कभी कबाब,कभी बिरयानी,
कभी खीर,तो कभी रसभरी,
कभी स्वादिष्ट हलवा पुङी।

होली मधुरम थी उनके गुझियों से,
भरी-पूरी खोये मेवों से,
कनस्तर के कनस्तर बनते जाते,
हम बच्चे खूब चुराकर खाते।

छुट्टियों की रहती थी आस,
बुआ,नानी के बाद सीधे उनके पास,
हम बच्चों की वह नटखट सी यादें ,
माँ और उनकी सुख और दुःख बांटती, वह बातें।

देना कितनी बार मेरा साथ,
रोज़ पढ़ाना संस्कृत के पाठ,
मोदकं,बालकः,सब उनसे ही जानी थी,
मुझको इस विषय में पास कराकर ही मानीं थीं।

स्कूल में भी माँ की जगह वो ही आतीं थीं,
शुरू में मेरी माँ ही वो जानी जाती थीं,
इनाम जब मुझे मिलते तो खुश वो हो जातीं,
दर्शकों में बैठ ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजातीं।

दिन बीते महीनों में और महीने सालों में,
सफेदी सी आ गयी थी उनके बालों में, 
फिर भी सारा दिन चकरघिन्नी सी घूमती,
हर काम अपनें निपटातीं, कभी ना थकतीं।

हर किसी के सुख दुःख में खङी हो जातीं,
हर किसी का साथ निभाती,
फिर भी कभी ना घबरातीं, 
हर पल दिखती वो मुस्कुरातीं।

जो खटती रहती थी दिन रात, 
क्यों पङी हैं निर्जीव सी आज, 
देखो कितनी नलियाँ और मशीनें लगी हुई थीं,
क्यों ऐसे बेसुध,फीकी सी और स्थिर पङीं हैं।

हर सुई जो चुभी उनको,दर्द दे गया हमको,
हर खून का कतरा जो बहा उनसे,वह खाली कर गया हमको,
हर ज़ख़्म उनका रुला रहा था सबको,
मजबूर से,हाथ बांधे खङे थे हम सब तो।

आज वो दे गयीं हम सबको दग़ा,
छोङ गयीं हर उसको जो है उनका सगा,
तोङ गयीं वो सारे बंधन,
छोङ गयीं हर साँस,हर स्पन्दन ।

माँ ने भी आज पूरा मायका खो दिया, 
क्यों ऊपरवाले तुमने उनको भी छीन लिया,
एक खुशी भरी उम्मीद थीं वो माँ के लिए,
रह गयीं अब अकेली,कौनसी आस लेकर माँ अब जिये।

क्यों अचानक यूँ चली गयीं वो हमें छोङकर,
नाते,रिश्ते,प्यार के हर बंधन तोड़कर, 
उन्होंने ही तो रखा हूआ था सबको जोङकर,
फिर क्यों दूर गयीं वो सबसे मुँह मोङकर।

मै भी बैठी हूँ आज लाचार,
ऊपरवाले तेरा फैसला कैसे करूँ स्वीकार?
निर्बल सी ये प्रश्न पूछ रही,होकर रुआँसी,
अरे निष्ठुर!माँ ही थी वो मेरी, वो मेरी मासी।।

-मधुमिता

आज मैंने अपनी माँ समान मासी को खो दिया 
ये चंद शब्द उनकी यादों को समर्पित-मेरी श्रद्धांजलि