ख़ामोश सन्नाटे के पीछे
तूफ़ान का कोलाहल,
स्थिर नज़रों के भीतर
कल-कल छल-छल l
मूक तस्वीर मे छुपा
सदियों का दर्द हैl
आज उसका रक्षक
हर एक मर्द है
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
नारा आज लगाओl
जब वो अपना हक़ मांग रही थी,
जीवन मे रंग रचने को,
तुम संग डग भरने को,
तब क्यों बुत बन मूक बैठे थे?
क्या तब तुम इंसां नही थे!!!!
©®मधुमिता