Thursday 14 April 2016

मेरा मन

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उड़  रही  हूँ मै यहाँ ,वहाँ ,

सुक्ष्म  सी , गहनता   के 

सागर में , गोते  खाती, 

टिमटिमाती  शुन्यता को 

भीतर  भर , अपने होने 

के रहस्य  को  खोजने 

की  कोशिश  करती ,

उस अनंत ,अतल ,अदृश्य 

को  पाने  की चाहत  में,

सितारों तक ऊँचे  पहुँच, 

उनके  बीच  नर्तन  करता ,

हवा के  भंवर  में,

चक्रवाती सा,पंख  फैलाकर, 

आज़ाद, मदमस्त हुआ जाता 

ये मेरा मन , मेरा मन  !!

-मधुमिता 

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