Saturday, 20 September 2025

रात बहुत है

सलेटी ख़्वाब ओढ़े ये जो साथ है,

देखो ये आसमाँ कह रहा अब रात बहुत है।


चाँद छुपा है, चाँदनी कहीं दूर,

शमा भी कह रही है कि रात बहुत है।


ना परिंदों की आहट, ना पतंगे कोई,

ख़ामोशियों की बस अब बात बहुत है।


सहर की आस में पिघलती मोम सी रोशनी,

हर लम्हे की साँसों में आहट बहुत है।


सलवटों में छुपा हुआ है ख़ौफ़ तन्हा,

उम्मीदों की भी अब तो हालत बहुत है।


तारों से कह दो वो कुछ तो चिराग़ सजाएँ,

देखो इस बार की तो स्याह रात बहुत है।


हर ख़्वाब बिखरा है, हर सोच अधूरी,

दिल कह उठा चुपचाप कि बात बहुत है।


कहती है "बावरी", अब ना तन्हा रह पाएँ,

इस दिल की दीवारों में रात बहुत है।


©®मधुमिता

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