Friday, 12 September 2025

दिल कहता है...

 ग़ज़ल: 


मतला:


दिल कहता है फिर से उसे देख लूँ,

नज़रों में उसकी सहर ढूँढ लूँ।


शेर 1:


कहाँ जाके रुके ये बहका सफ़र,

हर मोड़ पे उसकी ख़बर ढूँढ लूँ।


शेर 2:


न उसने पुकारा, न हमने कहा,

फिर भी वो लम्हा हज़ार ढूँढ लूँ।


शेर 3:


जो ठहरी नहीं थी किसी के लिए,

उसी मुस्कान में क़रार ढूँढ लूँ।


शेर 4:


हवाओं से उलझी रही रात भर,

उसी की सूरत में प्यार ढूँढ लूँ।


मक़्ता 


'बावरी' हूँ, मगर अब ये हद है मेरी,

ख़ुद को भी अब बस उसार* ढूँढ लूँ।


©®मधुमिता


*(उसार = राहत, ठिकाना, inner peace)

इस ग़ज़ल में दिल खुद बोलता है — ना दिखावा, ना दुआ, बस एक भीगी-सी सच्चाई।







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