ग़ज़ल:
मतला:
दिल कहता है फिर से उसे देख लूँ,
नज़रों में उसकी सहर ढूँढ लूँ।
शेर 1:
कहाँ जाके रुके ये बहका सफ़र,
हर मोड़ पे उसकी ख़बर ढूँढ लूँ।
शेर 2:
न उसने पुकारा, न हमने कहा,
फिर भी वो लम्हा हज़ार ढूँढ लूँ।
शेर 3:
जो ठहरी नहीं थी किसी के लिए,
उसी मुस्कान में क़रार ढूँढ लूँ।
शेर 4:
हवाओं से उलझी रही रात भर,
उसी की सूरत में प्यार ढूँढ लूँ।
मक़्ता
'बावरी' हूँ, मगर अब ये हद है मेरी,
ख़ुद को भी अब बस उसार* ढूँढ लूँ।
©®मधुमिता
*(उसार = राहत, ठिकाना, inner peace)
इस ग़ज़ल में दिल खुद बोलता है — ना दिखावा, ना दुआ, बस एक भीगी-सी सच्चाई।
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