जो ख्यालों में छुप-छुप के आती रही,
दिल की दुनिया महकती — तुम्हारी हँसी।
शेर 1:
कभी लहर बनके मचलती रही,
कभी साज़ों में बजती — तुम्हारी हँसी।
शेर 2:
सावन की फुहारों में घुलती हुई,
फूलों-सी मुस्काती — तुम्हारी हँसी।
शेर 3:
हर अंधेरे को रौशन करे चुपके से,
जैसे दीपक में जलती — तुम्हारी हँसी।
शेर 4:
कभी मासूमियत, कभी शोख़ अदाएँ,
हर रंग में ढलती — तुम्हारी हँसी।
अब 'बावरी' को न तन्हा कोई रात लगे,
जब ख्यालों में चलती — तुम्हारी हँसी।
©®मधुमिता
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