Saturday, 18 October 2025

हरियाली की तलाश

 

हरीयाली मयस्सर होती नहीं,

ना तो आसमान से बरसती है,

ना ज़मीन पर खुद-ब-खुद खिलती है।


यह कहीं छुपी होती है,

हमारे छोटे-छोटे कदमों में,

हमारी जरा सी रौशनी में।


चलो,

ज़रा सा उजाला करें इस अंधेरे को,

बाँटें खुशियाँ उन अनकहे लम्हों में,

जहाँ मुस्कानें भी खामोशी से खिलती हैं।


यह दुनिया,

जो कहीं बेरंग लगती है,

चलो उसे रंगीन कर लें,

अपने दिलों की हरियाली से।


छोटी-छोटी खुशियों को गले लगाएँ,

कभी ना छोड़ें,

कभी ना कम होने दें।


और फिर,

इस खुशियों के जहाँ को,

हम अपना घर बना लें।


©®मधुमिता

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