Saturday, 13 September 2025

क्या तुझे जानती हूँ मैं

 मतला:

क्या तुझे जानती हूँ मैं, तू कहीं वो तो नहीं,

जिसको पहचानती थी मैं, जो मेरा साया ना रहा।


1.

क्यूँ तू, तू ना रहा, क्यूँ अब हो रहा पराया,

वो अपना छोटा सा घोंसला भी बसेरा ना रहा।

2.

शब्दों की डोर थी जो तेरे-मेरे दरमियाँ,

अब वो भी ख़ामोशी का एक सहारा ना रहा।

3.

क्या कोई भूल थी मेरी, या थी कोई खता,

तू ही बता मुझ बावरी को, मेरा किनारा ना रहा।

4.

यूँ तो ये दिल धड़कता है हर सुबह की आस में,

पर साँसें चलती हैं अब रुक जाने की दुआ के साथ।


5. (मक़ता)

‘बावरी’ अब जीने का खेल भी अधूरा लगता है,

ज़िंदगी उलझी हुई, जज़्बातों का बसेरा ना रहा।


©®मधुमिता

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