मतला:
दिल कुछ कहे तो लब खामोश हो जाते हैं,
हम चाह के भी हर एहसास खो जाते हैं।
टूटे हैं आइने भी इस दिल की राहों में,
काँचों से लिपटे ख्वाब रोज़ रो जाते हैं।
ना चैन मिलता है, ना ही सुकून आता,
तेरे बिना ये दिल के मौसम भी सो जाते हैं।
तन्हा ही रह गया है दिल शोर की बस्ती में,
जहाँ सब बोलते हैं, पर जज़्बात खो जाते हैं।
कितनी दफ़ा संभाला इसे मैंने प्यार से,
पर दिल हैं कि दर्दों में ही खो जाते हैं।
"बावरी" दिल ने फिर इक सपना संजोया है,
जो हक़ीक़त बने उससे पहले तो जाते हैं।
©®मधुमिता
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