Friday, 12 September 2025

हर एक शाम में गूंजे तुम्हारी हँसी

हर एक शाम में गूंजे तुम्हारी हँसी,

जैसे खुशबू से महके तुम्हारी हँसी।


कभी बादल, कभी सूरज, कभी चाँद-सी,

हर अदा में है बदली तुम्हारी हँसी।


नीर सी, शांत सी, फिर भी मचलती हुई,

दिल के सागर में उतरे तुम्हारी हँसी।


रूह तक भीग जाए वो खनकती हवा,

जब भी कानों में पहुंचे तुम्हारी हँसी।


जैसे बच्चों की किलकारी सुबह-सवेरे,

ज़िंदगी को ही छू ले तुम्हारी हँसी।


हर ग़मों को भुला दे वो एक पल में ही,

इतनी प्यारी लगे क्यों तुम्हारी हँसी?


मैं तो हर बार इसी में फँसा रह गया,

एक जादू-सा कर दे तुम्हारी हँसी।

©®मधुमिता

No comments:

Post a Comment