Monday 21 January 2019

बसंत


बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा

प्रस्फुटित 

बिल्कुल इस वृक्ष के पत्तों की तरह

लहलहाता 

प्रेम की तरह उर्वर 

जो हर फूल 

हर पत्ते में उपजती है

चमकती है

निखरती है

आलिंगनबद्ध कर लेती है  

नाम लिख जाती है अपना 

बसंत के हर पोर में 

नाम मेरा 

और तुम्हारा 

फिर झूल जाती है 

लताओं से

कभी चढ़ती हुई

बेल को छूती 

आसमान तक बढ़ जाती है 

और फूल बन

बिखर जाती है कई रंगों में

समा जाती है मेरे नस नस में

बहती हुई बसंत संग 

चाहती है वो देखना

बसंत को मुझमें बसते हुये 

चिरयौवन सा रूप धर

यह बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा

©®मधुमिता

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