बसंत
बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा
प्रस्फुटित
बिल्कुल इस वृक्ष के पत्तों की तरह
लहलहाता
प्रेम की तरह उर्वर
जो हर फूल
हर पत्ते में उपजती है
चमकती है
निखरती है
आलिंगनबद्ध कर लेती है
नाम लिख जाती है अपना
बसंत के हर पोर में
नाम मेरा
और तुम्हारा
फिर झूल जाती है
लताओं से
कभी चढ़ती हुई
बेल को छूती
आसमान तक बढ़ जाती है
और फूल बन
बिखर जाती है कई रंगों में
समा जाती है मेरे नस नस में
बहती हुई बसंत संग
चाहती है वो देखना
बसंत को मुझमें बसते हुये
चिरयौवन सा रूप धर
यह बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा
©®मधुमिता
बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा
प्रस्फुटित
बिल्कुल इस वृक्ष के पत्तों की तरह
लहलहाता
प्रेम की तरह उर्वर
जो हर फूल
हर पत्ते में उपजती है
चमकती है
निखरती है
आलिंगनबद्ध कर लेती है
नाम लिख जाती है अपना
बसंत के हर पोर में
नाम मेरा
और तुम्हारा
फिर झूल जाती है
लताओं से
कभी चढ़ती हुई
बेल को छूती
आसमान तक बढ़ जाती है
और फूल बन
बिखर जाती है कई रंगों में
समा जाती है मेरे नस नस में
बहती हुई बसंत संग
चाहती है वो देखना
बसंत को मुझमें बसते हुये
चिरयौवन सा रूप धर
यह बसंत शायद मुझमें सदा रहेगा
©®मधुमिता
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