Saturday 9 February 2019

लखनऊ


हमारा देश, हमारी जन्मभूमि,

ये लखनऊ की सरज़मी,

नन्हीं परी सी आईं जहाँ,

वह सैनिक अस्पताल है यहाँ,

नवाबज़ादी हैं हम इस शहर की,

जो है राजधानी अवध की,

कत्थक की लय पर थिरकती गोमती की हर लहर,

हर सहर, शाम, रात औ दुपहर,

भातखंडे से निकलते सुरीले सुर और तबले की थाप,

तहज़ीब है हमारी साहब, हरदम ख़ुद से पहले आप,

हर शख़्स यहाँ ख़ुद में ही नवाब,

पेश ए ख़ास, बिरियानी और टुन्डे के कबाब,

मिठास यहाँ की मानों शीरमाल, शीरख़ुर्मा 

कुछ तीखापन मानों चटक कोरमा,   

प्रकाश की कुल्फी,

गुलाब सी महकती रेवड़ी,

हज़रतगंज की बास्केट चाट,

विद्यान्त की पूजा का ढाक ,  

छोटी बड़ी लाईनों वाला चारबाग,

मंडी बोलो तो बस कैसरबाग,

नजीबाबाद की चिकनकारी,

अमीनाबाद की वो भीड़ भारी,

निराला नगर है वो प्यारी सी जगह,

नानी हमारी रहती थीं वहाँ,

यादें कई बसतीं हैं अब भी जहाँ,

हर तरफ यहाँ वहाँ,

मनकामनेश्वर का सावन मनभावन,

बारादरी की शान वो शादी, ब्याह और लग्न,

मोहन मार्केट, लवर्स लेन,

तो बंगाली बाबू का एपी सेन लेन,

महानगर ,निशातगंज,

आलमबाग, अलीगंज;

करते शाम को सब गंजींग,

तो सुनिये सुबह को विश्वविद्यालय में,छात्र नेताओं का स्लोगन शाऊटिंग,

कन्टाप लगाते कुछ छात्र मिलेंगे,

झांपड़ रसीदते कई पात्र दिखेंगे ,

भूलभुलैया, रेज़ीडेन्सी की भुतहा कहानियाँ,

हनुमान सेतु के नीचे बहती गोमती की रवानियाँ,

लालकुआँ की पतंगबाज़ी,

तो चौक की हवेलियों की छतों पर कबूतरबाज़ी,

क्या वैसे ही खड़ा है अब भी इश्क के मारों का अड्डा हमारा शहीद स्मारक?

बताइये तो, फूटपाथ पर क्या अब भी बूढ़ी अम्मा लेकर बैठती हैं बेर, रसभरी और कमरख?

कई चित्र आँखों में ठहरे हैं अब भी सपनों से,

ये लखनऊ बसा हुआ है हमारे ही अपनों से,

सजा ये चिकन के कशीदों से,

मंदिर की घंटियो और आज़ानों से,

प्रेम और प्यार के धागे से सबको बांधे,

कला सुर और ताल को खुद ही में साधे,

इसने हर मज़हब को पनपाया,

इंसानियत की खुशबू से, हर दिल को महकाया ,

भाईचारे और मुहब्बत की यहाँ भरमार है,

मलय्यो सा नर्म अद्भुत प्यार है,

बताशों की मीठी खट्टी सी यह तक़रार,

ऐसी हमारी लखनऊ है, मेरे सरकार ।।



©®मधुमिता






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