धूप बसंती ...
बसंत की खुशनुमा धूप
झाँकतीं हैं जब किनारों से
झरोखों से और दरारों से
गर्मजोशी से
सौहार्द्रता से सबको गले लगाती
गालों को सहलाती
स्वागत करती रंगों का
रंगीन दिवास्वप्नों का
क्षितिज पर अब धूप छाँव
खेलने लगीं आँखमिचौली
वृक्ष सब खुशी से थिरकनें लगें
नव किसलय दल मचलने लगें
चूमने सुनहरी किरणों को
किरणें जो संचरित करती नवजीवन को
हर पर्शुका में दौड़ती
दिल बहलाती
ढाढ़स बंधाती
क्षणभंगुर ही सही
फिर भी उत्साह बढ़ाती
उत्सव सा उन्माद जगाती
उल्लासोन्माद की सीमा तक
जीवन मंगल का पाठ सिखाती
खुशियों को जीवंत कर जातीं
आशाओं की किरणों स्वरूप
कैसे यह धूप बसंती
हर आँगन में खिल खिल जाती।
©®मधुमिता
बसंत की खुशनुमा धूप
झाँकतीं हैं जब किनारों से
झरोखों से और दरारों से
गर्मजोशी से
सौहार्द्रता से सबको गले लगाती
गालों को सहलाती
स्वागत करती रंगों का
रंगीन दिवास्वप्नों का
क्षितिज पर अब धूप छाँव
खेलने लगीं आँखमिचौली
वृक्ष सब खुशी से थिरकनें लगें
नव किसलय दल मचलने लगें
चूमने सुनहरी किरणों को
किरणें जो संचरित करती नवजीवन को
हर पर्शुका में दौड़ती
दिल बहलाती
ढाढ़स बंधाती
क्षणभंगुर ही सही
फिर भी उत्साह बढ़ाती
उत्सव सा उन्माद जगाती
उल्लासोन्माद की सीमा तक
जीवन मंगल का पाठ सिखाती
खुशियों को जीवंत कर जातीं
आशाओं की किरणों स्वरूप
कैसे यह धूप बसंती
हर आँगन में खिल खिल जाती।
©®मधुमिता
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