Tuesday 8 January 2019

गीत कई...



चलो तुम्हें वो सारे गीत सुनाऊँ
जो लिखें थे मैंने 
जब  तुम गुम थीं 
स्वप्न लोक में
ख़्र्वाबों के रंगीन बिछौने पर 
मेरे बाँहों के सिरहाने पर
संभाली हुई
सुरक्षित सी
और लिख डाले मैंने गीत कई
जब तक सूरज चढ़ आया था
सहलाने लगा था चेहरे को तुम्हारे

मैं मेघ बन ऊपर उड़ आया
आसमां से सितारे चुरा लाया
उस गर्वित निष्ठुर पर्वत को 
हथेली पर उठा लाया
अर्पण तुमको करने को
श्रृंगार तुम्हारा करने को
देख तुम्हारी आँखों में
जुगनुओं की रोशनी तले
फिर लिख डाले मैंने गीत कई
हर जीत का हर पल बल पाकर 
इन दो नयनों में तुम्हारे

रंग डाला उस आसमान को
तुम्हारे अधरों की लाली से
जो चुरा लाया था तब
जब मुस्कान बिखेर रही थीं तुम
उस रंग-बिरंगी तितली सी 
सुन्दर एक परी सी
पंखों को अपने फैलाये
इन्द्रधनुषी छटा बिखेर रही थीं जब तुम
तब लिख डाले मैंने गीत कई
गुनगुनाता अल्हड़ भँवरे सा 
कई रस तुमसे ही चुराकर तुम्हारे

चलो ना हम दो उड़ चलें
एक तुम और एक मै
सात समंदर तेरह नदियों के पार कहीं
बादलों का एक द्वीप बसायें
एक दूजे में खो जायें
ज्यों मेरे शब्द और स्वर
एक दूजे के पूरक बन जायें
फिर इन दो आँखों में ख़ुद को खोकर 
लिख डालूँ मैं गीत कई
सुन्दर कोमल नाज़ुक से
सपनों के रंगों से तुम्हारे 

©®मधुमिता

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