भूलना....
छोड़ गये हो तुम मुझे,
अपने दिल के उस छोर पर,
जो गाँठ बाँधे बैठा है
मेरे दिल के हर धड़कन से
जिनमें तुम बसते हो,
और बसती हैं यादें तुम्हारी,
खोलती हूँ उन गाँठों को जब,
तो और कस जाती हैं
नामालूम क्यों!
उड़ाती हूँ यादोँ को हर शाम,
तो वो और रंग बिखेर जातीं हैं,
ना तुम देखते हो
और ना ही दिखते हो,
दिशाशून्य सी चल रही हूँ
धुमिल पड़ती स्मृति पटल पर,
गर तुम यूँ मुझे
भुला दोगे धीरे धीरे ,
तो मै भी तुम्हे
हौले-हौले से,
भूलने की कोशिश
तो कर ही सकती हूँ !!
©®मधुमिता
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