Tuesday 2 October 2018

प्रेम कहाँ छुप पाता है...


ठंडी बयार सी
दहकती अंगार सी
सूरज सा चरम
चान्दनी सी रेशम 
धूप छाँव के से खेल में
अद्भुत से बेमेल में
प्रेम कहाँ छुप पाता है
नयी कविता लिख जाता है 
नयनों में चहकते काजल सी 
पैरों में खनकती पायल सी
नयी बोली दे जाता है
शब्द नये सजाता है 
बोले अनबोले के फेर में
ख़ामोशी के हेर में
सब कुछ बदला सा लगता है
जब जहां नया सा लगता है
जब दिल बल्लियों उछलता है
अनुराग आँखों से छलकता है
तब प्रेम कहाँ छुप पाता है
नयी कविता लिख जाता है 

©®मधुमिता  

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