Wednesday 24 October 2018

चाँद....



चाँद आज शरमाया सा,
लजाया सा है कुछ,
बादलों के पीछे
लुकता- छिपता,
शायद मेरी नज़रों से
नज़र मिली जब,
तो झेंप गया वो ,
बहुत छेड़ा है मुझको इसने,
खिड़की से मेरी झाँक-झाँक कर,
रोज़-रोज़ ड्योढ़ी पर मेरे, 
बार-बार फेरी लगाकर,
आज काबू आया है ये,
क्यों भला अब छोड़ूं इसे,
खूब इसको मै सताऊँगी
गिन-गिन बदले चुकाऊँगी,
एकटक जो लगी ताकने
मनचली सी बनकर मै,
झट उड़ गया तब दूर गगन में,
देखो कैसे छिप गया आवारा, 
अब, चाँदनी के आग़ोश मे ।।

©®मधुमिता

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