Monday 22 October 2018

तब याद आ जाता है प्रेम ! 




शायद भूल जाती हूँ 

कभी कभी, प्रेम को,

फिर दिख जाता है 

दूधिया सा चाँद जब, 

चाँदनी संग लिपटा हुआ

तब याद आ जाता है प्रेम;

जब दिखती है

कंगूरे से झूलती 

कोमल सी लता,

पत्थर के स्तंभ से 

लिपटने को मचलती सी,

तब याद आ जाता है प्रेम;

रात में मदमस्त पवन,

मधुमालती के स्पर्श से

सुवासित हो,जब 

हिचकोले खाता है

और श्वेत सी मधुमालती

जब, लाज से गुलाबी हो

प्रेममयी हो जाती है,

तब याद आ जाता है प्रेम;

रात के अंधियारे में,

पुरानी उस किताब के 

जिल्द के भीतर छुपाई हुई

उन मटमैले ख़तों के 

धूमिल होते शब्दों को 

जब देखती हूँ,

फिर-फिर उनको जब मै, 

बार बार पढ़ती हूँ ,

तब याद आ जाता है प्रेम ! 

©®मधुमिता

No comments:

Post a Comment