तब याद आ जाता है प्रेम !
शायद भूल जाती हूँ
कभी कभी, प्रेम को,
फिर दिख जाता है
दूधिया सा चाँद जब,
चाँदनी संग लिपटा हुआ
तब याद आ जाता है प्रेम;
जब दिखती है
कंगूरे से झूलती
कोमल सी लता,
पत्थर के स्तंभ से
लिपटने को मचलती सी,
तब याद आ जाता है प्रेम;
रात में मदमस्त पवन,
मधुमालती के स्पर्श से
सुवासित हो,जब
हिचकोले खाता है
और श्वेत सी मधुमालती
जब, लाज से गुलाबी हो
प्रेममयी हो जाती है,
तब याद आ जाता है प्रेम;
रात के अंधियारे में,
पुरानी उस किताब के
जिल्द के भीतर छुपाई हुई
उन मटमैले ख़तों के
धूमिल होते शब्दों को
जब देखती हूँ,
फिर-फिर उनको जब मै,
बार बार पढ़ती हूँ ,
तब याद आ जाता है प्रेम !
©®मधुमिता
शायद भूल जाती हूँ
कभी कभी, प्रेम को,
फिर दिख जाता है
दूधिया सा चाँद जब,
चाँदनी संग लिपटा हुआ
तब याद आ जाता है प्रेम;
जब दिखती है
कंगूरे से झूलती
कोमल सी लता,
पत्थर के स्तंभ से
लिपटने को मचलती सी,
तब याद आ जाता है प्रेम;
रात में मदमस्त पवन,
मधुमालती के स्पर्श से
सुवासित हो,जब
हिचकोले खाता है
और श्वेत सी मधुमालती
जब, लाज से गुलाबी हो
प्रेममयी हो जाती है,
तब याद आ जाता है प्रेम;
रात के अंधियारे में,
पुरानी उस किताब के
जिल्द के भीतर छुपाई हुई
उन मटमैले ख़तों के
धूमिल होते शब्दों को
जब देखती हूँ,
फिर-फिर उनको जब मै,
बार बार पढ़ती हूँ ,
तब याद आ जाता है प्रेम !
©®मधुमिता
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