Saturday, 20 October 2018

शोर...


शोर बहुत है 
कुछ देर ख़ामोशी को सुन लें
बदहवास सी सोच
कल्पनायें भागती दौड़ती
यादें उमड़ती घुमड़ती 
अनर्गल से शब्द कई
बेलगाम सी आवाज़ें
नर्तन है किरणों का
छाया भी बकबकाती है
हवा कभी मचल उठती है
कोलाहल मचाती है 
भँवरा बौराया है
तितली खुसपुसाती है  
कानाफूसी का खेल है 
अनंत नादों का मेल है 
चलो चले निर्जन में
मौन से नीरव मे
 शोर बहुत है 
कुछ देर ख़ामोशी को सुन लें

©®मधुमिता

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