(मुखड़ा):
हरीयाली मयस्सर होती नहीं,
ज़रा रौशन जहाँ कर लें।
खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें,
खुशियों का ये जहाँ कर लें।
(अंतरा 1)
उजालों की कम है चाँदनी,
दिलों में है धुआँ-सा कुछ।
चलो उम्मीद को फिर से,
बुने कोई नया-सा रुख।
बुझी-बुझी इन राहों में,
इक सपना रवाँ कर लें।
....खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें...
(अंतरा 2)
सुनहरी बात हो हर रोज़ की,
ना हो शिकवा, ना हो घाव।
जहाँ हर दिल से निकले,
सिर्फ़ मीठा-मीठा भाव।
चलो नफ़रत को पीछे छोड़,
प्यारों का कारवाँ कर लें।
.....खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें...
(अंतरा 3)
जो टूटी आशा बची कहीं,
उसे फिर से सजाएँ हम।
गिरे जो फूल राहों में,
उन्हें फिर से उठाएँ हम।
हर दिल को आईना बनाकर,
सच का ही बयान कर लें।
......खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें...
©®मधुमिता
#गीत
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