Saturday, 18 October 2025

ज़रा रौशन जहाँ कर लें

 हरीयाली मयस्सर होती नहीं,

ज़रा रौशन जहाँ कर लें।

खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें,

खुशियों का ये जहां कर लें।


हर ओर वीरानियाँ पसरी हैं,

हर चेहरा कुछ कहता है,

उदासी की चादर ओढ़े हैं लोग,

जैसे जीना बस एक रस्म सा रह गया हो।


पर ये ज़रूरी तो नहीं कि

हम भी उस सन्नाटे में डूब जाएं।

चलिए, एक दिया जलाते हैं,

उम्मीद की रौशनी से अंधेरे को हराते हैं।


हो सकता है हरीयाली मयस्सर ना हो,

पर कुछ हरियाली हम अपने मन से बो सकते हैं।

खुशियाँ अगर दूर हैं,

तो क्यों न किसी और के चेहरे पर मुस्कान लाकर

ख़ुद की तन्हाई को भी भर दें?


एक छोटी सी मुस्कान,

एक दिल से निकला हुआ लफ्ज़,

किसी की दुनिया बदल सकता है।

तो चलिए, आज कुछ बाँट लेते हैं,

मुस्कानें, उम्मीदें, और थोड़ी सी इंसानियत।


एक ऐसा जहाँ बना लें

जहाँ हर कोई हल्का महसूस करे,

जहाँ हर दिल को थोड़ी राहत मिले,

खुशियों का उड़ता हुआ जहाँ बना लें।


©®मधुमिता

No comments:

Post a Comment