हरीयाली मयस्सर होती नहीं,
ज़रा रौशन जहाँ कर लें।
धूप छाँव के इस सफर में,
खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें।
मन के वीरान को भी आज,
सुकून-ए-बसंत का पैग़ाम दें।
छोटे-छोटे रंगों में रंग जाए,
हर दिल का सूना आँगन।
ना हो कहीं कोई उदासी,
ना बचे कोई छुपा ग़म।
चलो मिलकर कोई नई राह बनाएँ,
जहाँ खुशियों का ये जहाँ कर लें।
©®मधुमिता
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