कितनी बातें हैं, जो कही नहीं जातीं,
आँखों से बहती हैं, पर लबों तक नहीं आतीं।
हर मुस्कान के पीछे एक कहानी है,
जो किसी ने सुनी ही नहीं, बस रह गई अनकही सी, पुरानी सी।
भीड़ में भी तन्हा सा लगता है मन,
जैसे खुद से ही छूट गया हो अपनापन।
चेहरों की रौशनी में भी अंधेरे मिलते हैं,
सांसें चलती हैं पर कुछ पल ठहर से जाते हैं।
वक़्त ने बहुत कुछ छीन लिया,
कुछ लोग, कुछ सपने, कुछ भरोसे...
और हम बस देखते रह गए,
जैसे कोई मूक दर्शक अपनी ही ज़िंदगी का।
पर फिर एक दिन, दिल ने धीरे से कहा—
"क्या अब भी वही ठहराव ज़रूरी है?"
"क्या दर्द को थामे रखना ही इकलौता रास्ता है?"
"या चलें... उस तरफ़, जहाँ थोड़ी सी रौशनी बाकी है?"
तो मैंने आँसू पोंछे, और खुद से वादा किया,
कि अब हर दर्द को दुआ में बदलूंगा।
हर टूटी चीज़ को याद नहीं, सबक़ समझूंगा,
और हर उदासी के नीचे दबी एक मुस्कान को खोज लूंगा।
क्योंकि टूटना बुरा नहीं,
अगर जुड़ना शुरू हो जाए वहीं से।
और खो जाना भी डरावना नहीं,
अगर खुद को फिर से पाना शुरू कर दें वहीं से।
©®मधुमिता
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