हरीयाली मयस्सर होती नहीं,
चलो दिल को ही गुलज़ार कर लें।
जहाँ रौशन नहीं हो पा रहा,
चलो इक दीप मैं-तू झार कर लें।
खुशियाँ बाँट लें सब राहगीरों को,
मुसाफ़िर से ही त्योहार कर लें।
मुस्कानों का ये संसार रक्खें,
ग़मों का अब ना इज़हार कर लें।
अगर चाहो तो ये दुनिया सवरे,
चलो सूरत को ही सरकार कर लें।
©®मधुमिता
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